Monday, October 15, 2012

सुनो माँ ! मुझे नहीं बनना अच्छी लड़की....

उफ़ दीदी तुम भी हरदम
माँ की तरह पीछे ही पड़ जाती हो
ये न करो वो न करो
ज़रा सा आईने सामने खड़े देखा


बस इनकी बकबक शुरू
चलो अपना काम करो अब --
भले घर की लड़कियाँ
हमेशा आइना नहीं देखती
अच्छा तुम ही बताओ क्या
अच्छी लडकियां अपने बाल
कुएं में झाँक कर बनाती हैं
अच्छी लड़कियां ठहाके नहीं लगाती
धीमे हंसो --यूँ भाग कर न चलो
बाल खुले न रखो दो चोटियाँ बनाओ
दुप्पटा फैला कर ओढ़ा करो ---
अब बड़ी हो गई हो तुम --
छत पर मत खड़ी हुआ करो
हद हो गई अगर इतनी बंदिशें -हैं ---
तो मुझे अच्छा नहीं बनाना
--अजीब हो दीदी तुम भी न
जब तुम और भाभी गुपचुप बतियाती हो
तब मुझे भगा देती हो --जाओ यहाँ से
छोटी हो अभी पढो जा के ---
बड़ों की बातें नहीं सुनते --
अब बता ही दो मै क्या करूँ
माँ वो भी बदल गई है
कितना चिल्लाई थी मुझ पे
ऊंट जैसी लंबी हो गई
कब अक्ल आयेगी इसे --
जरा सा गाना ही तो गा रही थी
बारिश में भीग के ----
भाई को भी कोई कुछ नहीं कहता
माँ कहती है वो लड़का है
तुम उसकी बराबरी न करो
तुम्हे दुसरे घर जाना है --पर दीदी
हम क्यूँ न करें भाई की बराबरी
तुम्हे भी तो बुरा लगा होगा जब
माँ ने तुम से भी यही कहा था न
जब तुम इस उम्र से गुजरी थीं
फिर तुम क्यूँ करती हो ऐसा दीदी
मुझे नहीं बनना अब इतनी अच्छी लड़की !





- ब्लॉग ये पन्ने........सारे मेरे अपने - से साभार .........


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