Thursday, March 29, 2012

देगा तो कपाल,क्या करेगा गोपाल? (छतीसगढ की एक लोककथा)

दो मित्र थे। एक ब्राह्राण और दूसरा भाट। भाट ने एक दिन अपने मित्र से कहा, “चलो, राजा के दरबार में चलें। यदि गोपाल राजा खुश हो गया तो हमारे भाग्य खुल जायेंगे।”
ब्राह्राण ने हंसकर उसकी बात टालते हुए कहा, “देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल ? अर्थात जो कुछ हमारे कपाल/मस्तक यानि भाग्य में लिखा होगा, वही मिलेगा।”
भाट ने कहा, “नहीं, देगा तो गोपाल, क्या करेगा कपाल ! गोपाल राजा बड़ा दानी है, वह हमें अवश्य बहुत सारा धन देगा।”
दोनों में इस प्रकार विवाद होता रहा और अंत में गोपाल राजा के दरबार में जाकर दोनों ने अपनी-अपनी बात कही। भाट की बात सुनकर राजा प्रसन्न हुआ।जबकि ब्राह्राण के वचन की सुनकर उसे क्रोध आया। उसने दोनों को दूसरे दिन दरबार में आने की आज्ञा दी।
दोनों मित्र दूसरे दिन दरबार में पहुंचे। राजा की आज्ञा से उसके सिपाहियों ने ब्रह्राण को एक मुटठी चावल तथा एक मुटठी दाल और कुछ नमक दे दिया। भाट को एक सेर चावल, एक सेर घी और कद्दू दिया। राजा के आदेश से कद्दू में सोना भर दिया गया। राजा ने कहा, “अब जाकर बना खा लो। शाम को फिर दरबार में हाजिर होना।”
दरबार से चलकर वे नदी किनारे के उस स्थान पर पहुंचे, जहां उन्होंने रात बिताई थी। भाट मन ही-मन सोच रहा था-“न जाने क्यों, राजा ने ब्राह्राण को तो दाल दी, और मुझे यह कद्दू दे दिया। इसे छीलो, काटो और फिर बनाओ इसकी सब्जी। कौन करे इतना झंझट ? ऊपर से यह भी डर है कि कहीं इसे खाने से फिर से कमर का पुराना दर्द न उभर आए।” ऐसा सोचकर उसने ब्राह्राण से कहा, “मित्र, कद्दू खाने से मेरी कमर में दर्द हो जायेगा, इसे लेकर तुम अपनी दाल मुझे दे दो।” ब्राह्राण ने उसकी बात मान ली। अपना अपना सामान लेकर दोनों खाना बनाने में जुट गये। भाट दाल चावल खाकर एक आम के पेड़ के नीचे सो गया। ब्राह्राण ने जब कद्दू काटा तो उसे वह सोना दिखाई दिया, जो राजा ने उसमें भरवा दिया था। उसने मन ही मन सोचा, “मेरे भाग्य में था, मेरे पास आ गया।जबकि राजा तो इसे भाट को देना चाहता था, उसने सोना एक कपड़े में बांध लिया। कद्दू का आधा भाग बचाकर आधे की सब्जी बनाई ओर खा पीकर आराम से सो गया।
संध्या के समय दोनों मित्र फिर गोपाल राजा के दरबार में पहुंचे। ब्राह्राण ने शेष आधा कद्दू एक कपड़े में लपेटकर अपने पास ही रख लिया था। राजा ने ब्राह्राण की ओर देखकर पूछा,“अब तो मान लिया, देगा तो गोपाल, क्या करेगा कपाल? ”
ब्राह्राण ने आधा कद्दू राजा की ओर बढ़ा दिया और नम्रता से सिर झुकाकर कहा, “नहीं महाराज, देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल ?
राजा ने सोचा कि ब्राह्राण सच कह रहा है। ब्राह्राण के भाग्य में सोना था, भाट के नहीं और इसीलिए तो भाट ने अपने हिस्से में आया कद्दू ब्राह्राण को दे दिया। राजा ने कहा, “पंडित जी, तुम्हारा कहना ही ठीक है--देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल

Wednesday, March 14, 2012

ओह नन्ही चिड़िया !

ओह नन्ही चिड़िया
जव बहुमंगिला ईमारत के पीछे से
लाल लाल आँखे तरेरता सूर्य
मेरी खिड़की पर झांकता है
तुम पंजो से सलाखे पकड़ कर लटक जाती हो
ओह नन्ही चिड़िया
बालकनी में लगे फूल जब मुस्कान बिखेर देते हैं
बहती बयार में
फूल आगे पीछे ऐसे झूमते हैं
मानो मस्जिद में वच्चे कर रहे हों हफिजा
तुम बच्चो के स्वर में गाने लगती हो
ओह नन्ही चिड़िया
मैं बिस्तेर पर बैठा और तुम रोशनदान पर
तुमसे आँखे मिलते ही मैं बंद कर लेता हूँ अपनी आँखे
इस आशा से कि आँखों पर तुम
दोगी अपना हाँथ / पंजा और
पूँछोगी कौन ?
मैं कहूँगा मेरी बिटिया
ओह नन्ही चिड़िया !

रेवड़ की नदी !

रेवड़ की नदी ,
सतत प्रवाही शाश्वत .
पंहुंच वाले बांस,
गड़रियों के हाथ.
रेवड़ में छिपे कुत्ते,
संचालक के साथ .
हरी घास पर नदी ,
झील सी बिछा दी जाती .
जाओ -
हरी घास चरों,
उन उगाओ,
मेमनें जनो.
हमारे लिए-
भरदों अपने थन दूध से.
जिव्हा लपलपाते

नुकीले दांत चमकाते कुत्ते

नदी को हद में रखते

हांकते, हुडकते,पुचकारते गडरिये

ऊन उतारते,
दूध दुहते.
....
कुत्ते बदलते,
गडरिये बदलते पर,
बदलती नदी की किस्मत .
रेवड़ की नदी

सतत प्रवाही शाश्वत .
**
-विनय के जोशी