Friday, September 4, 2020

पत्थर पत्थर पत्थर!

तो तय हुआ कि अब
आगे लोग जेब में लेकर पत्थर निकलेंगे।

जेब पत्थर से भरी होगी
हाथों में पत्थर होगा
आंखें पथरा गई होंगी
स्वप्न पत्थर हो गए होंगे
सांसों और सोच में पत्थर होगा!

पत्थर हो गए शासन को पत्थर से तोड़ा जाएगा
पत्थरों का फूल बरसा कर झिंझोड़ा जाएगा

जिन्होंने रामायण पढ़ी हो वे जानते हैं
बंदरों ने लंका को पथराव से किया था पराजित
हर राक्षस व्यथित था बंदरों के पथराव से
रावण तक जाते थे पत्थर
वज्र से प्रहार करते।

हनुमान के दाह से भस्म हुई लंका
कांपती थी बंदरों के
पत्थरों से!

सुन लो लोगों
हर क्रूर शासक व्यथित होता रहा है
पत्थरों की मार से
वह जागता है पत्थरों की झंकार से।

निहत्थी प्रजा के आंसू हैं पत्थर!
मूक प्रजा की हुंकार हैं पत्थर!
कंकालों की आह हैं पत्थर!

पत्थर तोड़ती औरतें हथौड़ा फेंक कर
पथराव करने लगती हैं
धान लगाती औरतें
अपनी उदासी भूलकर चलाने लगती हैं पत्थर
वे शाप देती हैं पत्थर मार कर!

कई बार तो ऐसा भी होता है
पत्थर अपने आप चलने लगते क्रूरता के खिलाफ
सच्चे पत्थरों को अच्छा नहीं लगता
स्वप्नों का पत्थर हो जाना!

आगे फटी जेबें भरी होंगी
पत्थरों से
रसोई और थालियों में पत्थर का
भोजन और चबैना होगा।

भूखे लोग पत्थर खा लेते हैं
भूखे लोग पत्थर उठा लेते हैं
भूखे लोग 
हवा और धूल को जोड़ कर 
बना लेते हैं पत्थर!

गुलेलें चिडियों को मारना बंद कर देंगी
और उनके पत्थर 
शासकों की उड़ान में छेद कर देते हैं।

आगे ख़ाली गुल्लक 
पत्थरों की तरह उछाले जाएंगे
आगे पत्थर हो गए लोग
पत्थर लेकर निकलेंगे!

और उन पर सरकार को बंदूकों से निकली गोली कोई असर नहीं डाल पाएगी
उनकी बंदूकों और उनका मुंह
पत्थरों से बंद कर दिया जाएगा!

बोधिसत्व, मुंबई