Sunday, July 29, 2012

शराब की बोतल से जिन्न निकला !

शराब की बोतल से जिन्न निकला
और उस पियक्कड़ सेबोला
– हुक्म मेरे आका ǃ
आप जो भी मुझसे मंगवाओगे
वह मे। ले आउंगा
बस शराब की बोतल नहीं मंगवाना
वरना मुझसे हांथ धो के पछताओगे.

सुनकर पियक्कड़ बोला
–मेरे पास बाकी सब है
उनसे भागता हुआ ही शराब के नशे में
घुस जाता हूं
दिल को छू ले ऐसा कोइ प्यार नहीं देता
देनें से पहले प्यार, अपनीं कीमत लेता
तुम भी दुनिया की तमाम चीजें लेकर
मेरा दिल बहलाओगे
मुझे मालूम है तुम छोड़ जाओगे
जाओ जिन्न किसी जरूरतमंद के पास
मुझे नहीं खुश कर पाओगे......

- संजय राय

वीर सदा हंस कर पलता है !

वीर सदा हंस कर पलता हैं ,
असि पर और शरों पर,
जिसकी गाथा खेला करती ,
सदा जगत अधरों पर ।

वीरत्व सदा जाना जाता हैं ,
अपने तेज प्रखर से ...
साहस रखता जो तोड़ सितारे
ले आने का अम्बर से ।

सच हैं , वीरता ही रख सकती
हैं विजय की चाह ...
पर हैं सच्चा वीर सदा
जो चले धर्म की राह ।

वही विजय हैं पूज्य की जिसमे
निहित भुजा का बल हो ...
नहीं कोई भी कपट न कोई
लेश मात्र भी छल हो ।

- विजय शुक्ला

Friday, July 27, 2012

हर्षवर्धन आर्य की दो कवितायेँ !

हर्षवर्धन आर्य की कलाकृति

ममता
ममता का कोई धर्म नहीं होता ,
और, ना होती जाति माँ की ,
आँचल ही है उसकी पहचान
स्नेह ही है उसका धर्म
जैसे ,एक फूल का धर्म है खिलना .
जैसे एक नदी का धर्म है बहना.
जैसे ,एक पेड़ का धर्म है छाया देना ….
खिलती है माँ भी बच्चों को देख ,
बहाती है नेह क्षीर .
देती है आँचल की छाया ,
सदा -सदा ,
सचमुच ही
यदि , वह है…..माँ …..
तो………!

बेटियां धरती की

बेटियां धरती की
कब कैद हो पाई है
ख़ुशबू फूलों की,
तितलियाँ कब रुकी हैं
उड़ने से ,
ज्योंही खुलता है पिंजरा… ज़रा सा –
उड़ जाती हैं चिड़ियाँ
खुले आकाश में ,
और नानी माँ की रोचक– मनहर कहानियों के
तिलिस्मी संसार से
निकल आईं हैं बाहर
सारी परियां ……
नहीं रही हैं मात्र कल्पना की उड़ान
अपितु उड़ रही है सच्ची –मुच्ची की कल्पना (चावला )
असीम आकाश में …
जाती है चाँद के आँगन में सुनीता विलियम्स ’
खेलती है सितारों को बना कर सटापू*
झूलती है स्पेस-शटल में ’”नाओकोयामाजाकी ”*
गुनगुनाती है चंदा के कान में “ लिंडन बर्गर ”*
और “ट्रेस डायसन ” करती है गुदगुदी
गगन के बदन पर
स्कीइंग करती है शून्य में “स्टेफनी विल्सन ”
और ….ना जाने कितनी ही
सृजनरत सृजनाएं
धरती के आँचल से
उड़ कर
अंतरिक्ष के अंगना में
लिख रही हैं नाम सितारों पर…..
फैला रही हैं धरती की ख़ुशबू
सुदूर अंतरिक्ष में
ये नन्ही तितलियाँ
आजाद परियां
बेटियां धरती की !

हर्षवर्धन आर्य (कवि एवं चित्रकार )

१४ मई १९७२ की प्रभात बेला में हरियाणा के रोहतक जिले स्थित शास्त्री नगर में श्री हर्षवर्धन आर्य का जन्म हुआ। श्री आर्य की बचपन से ही कला में अत्यंत रूचि रही और सुरुचिवश अपने आस -पास के परिवेश से कला का अध्ययन एवम अनुप्रयोग करते रहे । आप की माता श्रीमती मूर्ति देवी अत्यंत धार्मिक प्रवृति की स्नेहमयी माँ हैं। एवम पिताश्री रामप्रकाश आर्य जो अत्यंत कर्मठ विचारवान और सिद्धांतवादी प्रकृति एवम धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति हैं ! इन दोनों की प्रकृति एवम प्रवृति का आपके जीवन (कला,साहित्य और चिंतन ) पर गहरा प्रभाव है ।व्यवसाय से स्वर्णकार ,मन से चित्रकार और आत्मा से कवि श्री आर्य अपनी कला और कविता से सबको आनंदमग्न करने का सद्प्रयास करते हैं !आपने अपनी चित्र कृतियों में कई प्रयोग किये हैं और उनके साथ काव्यात्मक संवाद स्थापित किया है ! साहित्य अकादेमी (संस्कृति मंत्रालय )द्वारा प्रदत फैलोशिप (दो वर्षीय अध्येयतावृति ) हेतु भी आपका विषय “कला और कविता :परस्पर संवाद “था , जिसमे आपने कलाकृतियों पर कविता लिखने के साथ -साथ प्रख्यात चित्रकारों सर्वश्री एस।एच।रज़ा ,एम।एफ. हुसैन ,जी .आर.संतोष ,आर .के .यादव ,मंजीत बावा ,विजेंद्र शर्मा तथा अजय समीर प्रमुख हैं श्री आर्य ने अनेक महत्वपूर्ण कला दीर्घाओं में आयोजित कलाप्रदर्शनों में अपनी चित्रकृतियों को प्रदर्शित किया है जिनमे इंडिया हैबीटेट सेंटर ,विज्ञान भवन, आईफैक्स ,ललित कला दीर्घा ,आर्ट मॉल, माटीसृजन ,पूर्वा सांस्कृतिक केंद्र ,इन्द्रधनुष(पंचकूला) ,हरियाणा कला परिषद भवन (कुरुक्षेत्र ) आदि प्रमुख हैं ! इसके अतिरिक्त आइफैक्स ,हरियाणा कला परिषद , अवंतिका ,गढ़ीस्टूडियो द्वारा आयोजित कला शिविरों में भी भागीदारी रही है ।कवि के रूप में आप कि कवितायेँ अनेक पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं ! ” दिन के उजाले में ” कविता संग्रह, सच्चे मोती (बाल कवितायेँ), कविता फलक (चित्र कृतिओं एवम कविताओं का संपादन ) प्रमुख हैं ! इस के अतिरिक्त आपकी कवितायेँ ,चित्र कृतियाँ , रेखांकन अनेक प्रमुख पत्रिकाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं.जिनमे मुख्य हैं इंडियन लिटरेचर , समकालीन साहित्य अक्षरम संगोष्ठी ,प्रवासी दुनियाँ ,मसि कागद ,साहित्यअमृत आदि हैं आपकी कला कृतियों और कविताओं का दूरदर्शन(डी .डी .-१,डी.डी.भारती , डी.डी. हिसार ,एवम आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल ,क्षेत्रीय चैनल आदि) से अनेक बार प्रसारण होता रहा है।आज-कल आप रोटरी क्लब दिल्ली अपटाउन के साप्ताहिक पत्र “अपटाउन न्यूज “के संपादक हैं तथा ” श्री विष्णु प्रभाकर जन्मशती समारोह समिति “के सचिव हैं! आपको संस्कृति मंत्रालय एवम साहित्य अकेडमी की जू.फेलोशिप के अतिरिक्त हिंदी अकादेमी दिल्ली का नवलेखन पुरस्कार ,आशुलेखन पुरस्कार ,प्रज्ञा सम्मान ,कलाश्री सम्मान ,काव्य महारथी सम्मान ,एशियन अकेडमी द्वारा अकेडमी अवार्ड सहित कला-साहित्य के क्षेत्र में अनेक सम्मान मिलें हैं ।

मिनाक्षी जिजीविषा की कविता 'स्त्री' !



सुनो !
झाड़ू बुहारते हुए
बीन लेना ,कचरे से
छुट गयी काम की चीज़ों की तरह
छुट गयी , अपनी कुछ इच्छाएं भी !
झूटे बर्तन साफ़ करते हुए
सँभाल लेना
बर्तनों की चमक की तरह
आँखों में कुछ सपने भी
खाना बनाते हुए
जीभ के स्वाद की तरह
सहेज लेना स्मृति में
कविता भी
मैले कपडे पचिते हुए
पसीने की महक की तरह
बसा लेना रोम रोम में
जिजीविषा भी
चूल्हा जलाते हुए ....
रख लेना कुछ चिंगारियां
शब्दों की .....अपने सीने में ...
ताकि मिल सके उर्जा
जीने के लिए ........


मीनाक्षी जिजीविषा

हिंदी साहित्य में 'स्त्री विमर्शपरक' रचनओं के क्षेत्र में मीनाक्षी जिजीविषा एक जाना माना नाम है.
कविता, गज़ल, गीत और लघुकथा विधाओं में रचना करने वाली मीनाक्षी का मानना है --
'कोमल ह्रदय की भावनाओं को जब अभिव्यक्ति का कोई और माध्यम न मिला
तो वह मन कि कच्ची मिटटी से काव्य कोपलें बन खिली'.
इनके अनेक कविता संग्रह और एक लघु कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
वर्तमान में भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत हैं.
संपर्क :
मीनाक्षी जिजीविषा
5/2 नजदीक सिटी थाना
मोहल्ला कजियन
हिसार-125001 (
हरियाणा )
फ़ोन 08901186300

सुषमा भंडारी की दो कवितायेँ !

सच !

सच!
बहुत जरूरी है
आर्थिक कवच
प्रत्येक देह के लिए
चाहे वो कथा संसार हो
या फिर संसार।

सच!
बहुत जरूरी है
चिरागों का जलना
प्रत्येक खुशी के लिए
चाहे वो घर हो
या फिर जिंदगी का सफर।

सच!
बहुत जरूरी है
यादों के पल
जीने के लिए
चाहे वो सुख दें
या दुःख।

सच!
बहुत जरूरी है
रिश्तों में विश्वास
चाहे वो गैर के लिए हो
या फिर
अपने लिए।

क्षमता

रेत हूँ
ढह जाऊँगी
नदी हूँ
बह जाऊँगी
पीड हूँ
सह जाऊँगी
आग हूँ
दह जाऊँगी!

मैं अबला नहीं
सबला हूँ
और न ही मैं
जड़ हूँ
न जड़ बनकर
रहना चाहती हूँ
मैं चेतन हूँ
और ये सब
जिंदगी के यथार्थ
जीने की
क्षमता है मुझमें।


सुषमा भंडारी

हिंदी की चर्चित गीतकार / हिंदी साहित्य में एम्.फिल. की उपाधि प्राप्त
अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित सुषमा भंडारी के कई कविता और गीत संग्रह हैं
साहित्य जगत मैं इन्हें माहिया और गीत विधाओं के लिए जाना जाता है

sushma.bhandari.547@facebook.com

सुधा उपाध्याय की तीन कवितायेँ !



(1)
मन पीटो ,सपने जोड़ो ....अपनी घुटन समेटो
उन्नीदीं घड़ियों में उन्हें बो आवो
जब पक कर खडी हो जाए फसल
बाँट दो बूरा बूरा ... चूरा चूरा
ऐसे ही होता है सृजन
ऐसे ही मिलता है मन .....


(2)
बहुत कुछ बचा है ,इस ऊब उकताहट के बीच
बहुत सी आत्मरति ,बहुत से शोकगीत
मधुमक्खी के छत्ते सी फैली है लाचारी
रेगिस्तानी भूख प्यास और दिमागी बीमारी
मटमैली आँखें ,खुरदुरी हथेली
भीतरी दरारें ,बाहरी दीवारें
बहुत से भद्दे मज़ाक ,भितरघात ...
बदहवास रातें ,सडती गंधाती आस
हाएना संततियों की जंग लगी सोच
इस मुर्दा संस्कृति की देगी गवाही ....
क्या अब भी आप कहेंगे //बहुत कुछ बचा है
इस ऊब उकताहट के बीच ..



(3)
मित्रों कल मैंने देखा
लाचार सूर्य अपने अभाव समेट कर
समुन्द्र में कूद गया ....
शहर रौशनी से चुंधिया रहे थे
लोगे अपने अपने मुर्दा होंठों पर
ज़िन्दगी के गीत गा रहे थे.. रात नशे में डगमगा रही थी
मेरे सिरहाने बहुत सी तस्वीरें ,और उनकी कहानी तितर बितर थी
हर खिड़की के पीछे खामोशी और गहरी उदासी थी
फिर भीअपने मुर्दा होंठों पर जिंदगी के गीत सजाये हुवे थे




डॉ सुधा उपाध्याय

दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरिअल कॉलेज में
असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत
हिंदी की अनेक पत्र पत्रिकाओं में कवितायेँ प्रकाशित.