Tuesday, June 22, 2021

तवायफ !

हाँ तवायफ हूँ मैं....
हाँ कई नाम है मेरे....?
कोई वैश्या,तो कोई देवदासी कहता है।
कोई पिंगला तो कोई गणिका कहता है।
गढ़ लेते है सब मेरा नाम,
रूप व यौवन से शब्द लेकर...
कोई रूपसी,कामिनी,अप्सरा कहता है
तो कोई बाजारू ,रखेल ,बेहया, तो...
किसी को  रूपजीवा, कुंभदासी,पुंश्चली कहना पसंद है
न जाने कितनी उपमाएं गढ़ ली मेरे लिए।
मेरे अनाम नाम की.....

हाँ तवायफ हूँ मैं....
दिन की रौशनी मेरे लिए स्याह और 
रात का अँधेरा रौशन है मेरे लिए...
कब कहाँ किसी ने जाना मुझें....?
कौन हूँ कैसी हूँ क्यों हूँ मैं.....?
हर किसी की नजर पड़ती है बस
नीचे से ऊपर की ओर निहारती..
मेरे रंगे पुते बदन को।
मेरे बदन की उभरी खरोचें 
कहाँ दिखाई देती किसी को....?
जिन्हें छिपा लेती हूँ हर सुबह उबटन के लेप से।
मेरे उरोजों का उभार,जिस्म में भरा
मांस ही दिखता है उन्हें...

हाँ तवायफ हूँ मैं....
रोज कई-कई बार लगता है मेरा मोल
जिस्म का वजन देखकर...
कसाई के बकरे की तरह....
कब कहाँ दिखाई देता है किसी को..?
मेरा कलुषित भूत और अंधकूप सा भविष्य।
रक्तिम मांस के नीचे छिपा दिल कहाँ देख पाता कोई..?

हाँ तवायफ हूँ मैं.....
हर रात सूरज ढलते 
भटकते आ जाते है
सफेदपोश लगाने बोली
मेरे मांस और मंजा की.....
जिनके कुर्ते का रंग दिन के उजाले में
चटकता है मोती सा....
रात भर करते है मुँह काला....
मेरे जिस्म के गोरे रंग से...
मेरी श्वेत पिंड़लियों का गुणगान करते।
मेनका ,रंभा ,उर्वशी से आगे कर!

हाँ तवायफ हूँ मैं......
पर वेपर्दा हूँ बापर्दा नही
न धोखा,न फरेब ,न दगा़,न घात 
इन सब से दूर 
न कोई राज है मेरा,
न दोहरा चरित्र
सब कुछ खुली किताब सा है मेरा जीवन।
कुछ दोहरे चरित्र वालो से अलग!

हाँ तवायफ हूँ मैं.....
पर  सरिता सी पवित्र 
ढोती हूँ मैला, समाज का...
हर रात 
मौन रहकर....
हर दर्द को दबा कर 
जो दिया है इसी समाज ने...
हाँ तवायफ हूँ मैं....?

हेमराज सिंह'हेम' कोटा राजस्थान

तासीर-ए प्रीत

एक प्रश्न किया था हमने
प्यार का तासीर है कैसा
कटु,निबोडी पीर जैसा
दूध चीनी  की खीर जैसा
या नैनन अश्क नीर जैसा ?

 गर्म-गर्म पकौड़े जैसा
या चमड़े के कोड़े जैसा
बिन लगाम के घोड़े जैसा
या गोविंद रण-छोड़े जैसा?

नर्म मुलायम रेशम जैसा
भाग्य- सितारा चमचम जैसा
सावन बून्द झर झमझम
जैसा
या जख्म पुते मरहम जैसा?

भिन्न -भिन्न विचारों ने
भिन्न -भिन्न मत दिए 
विपरीत संस्कारों ने
हृदय  क्षत-विक्षत किये
असीम श्रदायुक्तों ने
मस्तक  नत- किये !!

कई एक विचारों ने
तोड़ कर मरोड़ दिया
स्वयं के दुश्चिंतन-पथ पर
ला कर तन्हां छोड़ दिया!! 

वीना उपाध्याय
मुज़फ्फरपुर बिहार

Monday, June 7, 2021

मुस्कुराहट

एक प्यारी सी मुस्कुराहट
हौसलों को बढ़ा देती है,
पल भर में प्रेम की उच्च 
शिखर पर चढ़ा देती है !!
 दुःख भरी जिंदगी में 
संचार कर देती है,
खुशियों की अनंत
भंडार भर देती है  !!

जीने की लालसा जगा कर
पलकों पे अनेको 
ख्याब सजा देती है,
जो आंखों से बहुत 
दूर होता है,उसको 
पास से देखने को 
बेताब कर देती है !!

एक प्यारी सी मुस्कान से
बेगानाभी लगता है अपना सा
उसके मौजूदगी का एहसास
लगने लगता है 
 साकार सच सपना सा !!

एक प्यारी सी मुस्कान 
तन्हाई को भगा देती है,
रंगों में ढल जाती है बेवफाई
हर्षोल्लास  जगा देती है !!

 जिंदगी में मुस्कुराहट 
है वरदान की तरह,
जिंदादिल जान की तरह,
परिपूर्ण अरमान की तरह
मधुरधुन गान की तरह  !!

   वीना उपाध्याय
मुज़फ्फरपुर बिहार

Sunday, June 6, 2021

हाँ पुरुष हूँ न...

कह नहीं पाता कई बार
अपने मन की 
उद्विग्नता को.. 
नहीं संभाल पाता 
कई बार,, 
मन के अंदर चल रहे
तूफान को.. 
हाँ उस वक़्त बस एक 
साथ की ख्वाहिश मेरी..
उस स्त्री की.. 
जो समझ सके 
तन ही नहीं.. 
मन के भावो को भी.. 
भूल जाना चाहता हूँ 
समक्ष उसके... 
कि हाँ पुरुष हूँ मैं. 
और उस पुरुष होने के 
दम्भ को भी.. 

रो सकूँ समक्ष उसके.. 
और कहूं.. 
हाँ हूँ पुरुष.. 
पर दर्द होता मुझे भी,  
बिलकुल तुम सा ही.. 
जो समझ मेरे दर्द को,, 
दुलार दें, माँ की तरह.. 
और मेरे बालों पर 
अपने हाथों, 
और गालों पर.
अपने स्नेह का, 
चुम्बन अंकित करें.. 
हाँ पुरुष हूँ.. 
पर फिर भी एक कंधा 
ढूंढता हूँ मैं भी 
सुकूँ के लिये
हमेशा संग तुम्हारे...
- अखिलेश मिश्र