Monday, March 24, 2014

शहीदों पर एक पुरानी रचना !


सब भूल गया आज खिली ये बहार है
है गर्दिशे-नसीब चली जो बयार है

शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है

लिखी है हमने आज़ादी इबारत खूं के क़तरों से
मिटाने को उसे भी हम लगे हैं नाज़-नखरों से
बहुत दिल पर चले आरे दोबारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है

हमीं दुश्मन हैं अपनों के ख़ुदी पे वार करते हैं
लगाते घाव अपनों को नहीं वो प्यार करते हैं
मिटा डाला वो अपनापन बेचारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है

अभी भी कुछ न बिगड़ा है सँभल जाओ मेरे भाई
नशा दौलत का छोड़ो अब चले आओ मेरे भाई
न खेलो खेल ख़ुदगर्ज़ी, सहारा याद आता है
वो मंज़र याद आते हैं नज़ारा याद आता है


रचनाकार : इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

करौंदा !

नइ बोलय करौंदा रिसाय हावय का
बचपन में मां जिस दिन करौंदे की चटनी बनाती थी, उस दिन मैं कुछ अधिक ही डकार जाता था । थोड़ी सी धनिया या पुदीने की पत्ती, कुछ हरी मिर्च और नमक मिला दो, बस्स । फिर देखो उसका रंग । अब जब मां नहीं रहीं तो आज बाजार में करौंदे देखकर उसकी याद आ गई । हिंदी में करौंदा । करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल संस्कृत में । मराठियों के लिए मरवन्दी तो गुजरातियो के लिए करमंदी। बंगाली भाई कहे करकचा और तेलुगु भाई बाका। अंगरेज़ों के लिए जस्मीड फ्लावर्ड ।
करौंदे के जाने कितने गुन ! फलों में अनोखा । करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। पका करौंदा यानी वातहारी। आम घरों में करौंदा सब्जी, चटनी, मुरब्बे और अचार के लिए मशहूर । रस हाय ब्लड प्रेशर को कम करने में कामयाब । महिलाओं की मुख्य समस्या 'रक्तहीनता' (एनीमिया) से छूटकारा दिलाने में विश्वसनीय । पातालकोट (मध्यप्रदेश) में आदिवासी भाई करौंदा की जड़ों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
भारतीय मूल का यह एक बहुत ही सहिष्णु, सदाबहार, कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा है । इसके फूल सफेद होते हैं तथा फूलों की गन्ध जूही के समान होते है।
मां के हाथों बनी करौंदा चटनी को याद करते-करते कवि त्रिलोचन की वह नायाब पंक्तियां भी बरबस याद आ रही हैं :
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करौंदा
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सघन अरण्यानी
कंटकित करौंदे की
फलों भरी
फल भी छोटे, मझौले
और बड़े
अलग अलग पेड़ों में
लगे हुए।

बड़े फल साथियों की राय से
हम सब ने तोड लिए
घर के लिए
प्रसंस्करण दक्ष हाथ करेंगे।

बड़ॆ करौंदे ही करौंदे कहलाते हैं
छोटे और मझोले/ करौंदी
मशहूर हैं।

चटनी, अचार
नाना रकम और स्वाद के
अपनों को उनकी
रुचि जान कर देते हैं।

मेरे जनपद में प्रेमिका को प्रेमी जब करौंदा कहकर पुकारता है तो उसका स्वाद प्रेमी-प्रेमिका ही बूझ पाते हैं । ऐसे में भैय्यालाल हेड़ाऊ, अनुराग ठाकुर जैसे छत्तीसगढ़ के लोककलाकारों का स्वर मेरे भीतर उभरने लगता है :
आँखी में रतिहा बिताए हावे का
आँखी में रतिहा बिताए हावे का
कैसे संगी नई बोलय करौंदा रिसाय हावे का
ये रिसाय हावे का हां रिसाय हावे का

'साल करोंटा (करवट) ले गई, राम बोध गये टेक, बेर करौंदा जा कटे, मरन न दे हों एक'। बुंदेलखंड में ये पंक्तियां 19 शताब्दी के अकाल के हालात में गुनगुनाई गयी थीं। भई करौंदा को लोक-समाज बिसरा भी कैसे सकता है । क्या मैं भूला पा रहा हूँ ? उसे और मां को भी ।

- जयप्रकाश मानस

Wednesday, March 19, 2014

"ऐनक"

बाबा जी की ऐनक देखो
कितनी प्यारी ऐनक
खबर पढ़ाती बाबा जी को
दिल्ली से लंदन तक।

बाबा जी की पतली है पर
दादी की मोटी ऐनक
क्यों मेरे नाना नानी जी भी
नहीं लगाते ऐनक।

चाचा चाची मामा मामी
सबकी काली ऐनक
पर मेरे मम्मी पापा की
रंग बिरंगी ऐनक।

मैं भी जब मेले जाती हूं
लाती सुंदर ऐनक
पर शीशे की नहीं है होती
पन्नी की मेरी ऐनक।
000
नित्या शेफ़ाली

---लिंक है----http://fulbagiya.blogspot.in/2014/03/blog-post_17.html

प्रेम की गंध !

याद है तुम्हें
जब मिले थे हम
पहली बार,
हर तरफ बिखरे थे
जलते हुए पलाश,

किसी अभेद
अदृश्य किले में
विचरते, तलाशते
प्रेम के क्षण,
क्यूं भुला दिये
गये जाने
साक्षी हमारे
पावन प्रेम के
वो सारे अहसास,

कितनी सदियों से
स्मृतियों में बसी
प्रेम की गंध,
विस्मृतियों मे खोज रही
आती-जाती हर एक सांस,

दीप जल रहा कबसे
लौ भी हो गयी
जैसे स्थिर,
समय का चक्र
फिर घुम रहा
याद दिलाने फिर
लौट आया इतिहास......


- डॉ. अरुणा

कोई ख़ास नहीं !

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं !
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा !
जज़्बात ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा सा !

जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं !

हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तूफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा !

जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र
जो समंदर है , पर दिल की प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं !



अज्ञात कवि को आभार सहित ........