Friday, October 30, 2020

कैलाश गौतम की कविता- गाँव गया था, गाँव से भागा

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
सरकारी स्कीम देखकर
बालू में से क्रीम देखकर
देह बनाती टीम देखकर
हवा में उड़ता भीम देखकर
सौ-सौ नीम हक़ीम देखकर
गिरवी राम-रहीम देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
जला हुआ खलिहान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए धनी का रंग देखकर
रंग हुआ बदरंग देखकर
बातचीत का ढंग देखकर
कुएँ-कुएँ में भंग देखकर
झूठी शान उमंग देखकर
पुलिस चोर के संग देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
बिना टिकट बारात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
बिना टिकट बारात देखकर
टाट देखकर भात देखकर
वही ढाक के पात देखकर
पोखर में नवजात देखकर
पड़ी पेट पर लात देखकर
मैं अपनी औकात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए नए हथियार देखकर
लहू-लहू त्योहार देखकर
झूठ की जै-जैकार देखकर
सच पर पड़ती मार देखकर
भगतिन का शृंगार देखकर
गिरी व्यास की लार देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
मुठ्ठी में कानून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
मुठ्ठी में कानून देखकर
किचकिच दोनों जून देखकर
सिर पर चढ़ा ज़ुनून देखकर
गंजे को नाख़ून देखकर
उज़बक अफ़लातून देखकर
पंडित का सैलून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

Friday, October 2, 2020

मैं खुद से मिलने जाता हूँ

मैं खुद से मिलने जाता हूँ
मैं खुद को ढूढ़ के लाता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ

दुर्जम वन के अंधियारे में
धरती से दूर किनारे में
मैं खुद का पीछा करता हूँ
निर्जन मन के गलियारे में

कुछ खोता हूँ कुछ पाता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ

कुछ साथ नही कुछ सोच नही
आशाओं का बोझ नही
दिल सीसे सा लाता हूँ
भावों का कोई खरोंच नही

फिर से सीसा चमकाता हूँ
मैं खुद से मिलने आता हूँ

नागफनी या बरगद हो
बड़ा हो या बौना कद हो
अंतर्मन की पर्तें खोलूं
हो गरल कहीं या कुछ मद हो

मद गरल वहीं खो आता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ

जब खुद को खुद में पाता हूँ
तब ही मैं वापस मैं आता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ 
मैं खुद से मिलने जाता हूँ

राजेश कुमार श्रीवास्तव