Tuesday, May 12, 2020

किसका दोष ?

साल 1992 में ही भविष्यदृष्टा कवि/लेखक जयनाथ प्रसाद ‘सात्विक’ जी ने कविता लिखी जो आज के कोरोना दौर में बिल्कुल सटीक बैठती है -

हे उद्धत मानव !
बहुत खाये
तुमने
ज्ञानवृक्ष के वर्जित फल
और
अब
अपच हो गया है
तुम्हें।

इसकी मिठास ने
मोहित कर दिया है तुम्हें।
और
तुम
समाज से
बहुत ऊपर अत्यन्त विशिष्ट
समझने लगे हो
अपने को
इसीलिए
तुम्हें झेलनी पड़ रही है
एकांतवास की
पीड़ा
जिसका
न ओर है, न छोर।
फिर भी नहीं चेतते
ओ पगले !

तो इसमें किसका दोष ?



- जयनाथ प्रसाद ‘‘सात्विक’’

Sunday, May 10, 2020

मातृ दिवस के अवसर पर माँ के लिए कुछ पंक्तियाँ.......

लेती नहीं दवाई "माँ",
जोड़े पाई-पाई "माँ"।

दुःख थे पर्वत, राई "माँ",
हारी नहीं लड़ाई "माँ"।

इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई "माँ"।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई "माँ" ।

जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई "माँ" ।

बाबू जी तनख़ा लाये बस,
लेकिन बरक़त लाई "माँ"।

बाबूजी थे सख्त मगर ,
माखन और मलाई "माँ"।

बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई "माँ"।

नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,
मां जी, मैया, माई, "माँ" ।

सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई  "माँ" ।

घर में चूल्हे मत बाँटो रे,
देती रही दुहाई "माँ"।

बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ-साथ मुरझाई "माँ" ।

रोती है लेकिन छुप-छुप कर,
बड़े सब्र की जाई "माँ"।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई "माँ" ।

बेटी रहे ससुराल में खुश,
सब ज़ेवर दे आई "माँ"।

"माँ" से घर, घर लगता है,
घर में घुली, समाई "माँ" ।

बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई "माँ" ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई "माँ"।

घर के शगुन सभी "माँ" से,
है घर की शहनाई "माँ"।

सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई मां ।।

कवि योगेंद्र मौदगिल के फेसबुक पेज से ........

एक ग़ज़ल

राजनीत के वरदहस्त ने क्या-क्या दिन दिखलाये जी ।
  झुक-झुक कर सब पांव बहाने गला दबाने आये जी ।

जिस गीली मिट्टी से वो बंदूक बनाने वाले थे, 
 कईं खिलौने उस मिट्टी से जनता ने बनवाये जी ।
खबर छपी थी हरम के मालिक मौतों के सौदागर हैं,
  रब जाने मासूम यहां पर किससे मिलने आये जी ।
हिरणी के आगोश में बैठा उसका बच्चा सोच रहा,
  नदिया की नदिया जहरीली, ये कैसे दिन आये जी ।
हवा ने फिर पीपल को शायद कोई खबर सुनाई है, 
 पत्तो ने जो जोर-जोर से पंछी निरे उड़ाये जी ।