Friday, November 27, 2015

घास की हरी पत्तियों में !

घास की हरी पत्तियों में
छिपी हुई पगडंडियाँ थीं
जिन पर हम चलते थे

हम चाहते थे कोई साँप हमें डस ले
मगर हर साँप चौंककर रास्ता छोड़ देता था
मृत्यु हर बार जीने का एक मौक़ा देती थी
और हम जिए चले जाते थे
अपने लिए कम
दूसरों के लिए ज़्यादा

हम खुश दिखते थे
क्योंकि जीने के लिए खुश दिखना था
इस समाज में

दुख के सिक्कों को
मिट्टी के गुल्लक में डालते हुए
इस तरह कि खन्न की भी कोई आवाज़ न हो।


- एकांत श्रीवास्तव
 

जख़्म !

इन गलियों से
बेदाग़ गुज़र जाता तो अच्छा था

और अगर
दाग़ ही लगना था तो फिर
कपड़ों पर मासूम रक्त के छीटें नहीं

आत्मा पर
किसी बहुत बड़े प्यार का जख़्म होता
जो कभी नहीं भरता ।

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- कुँवर नारायण 


आप जैसा कुछ नहीं !

राह वैसे बंद कोई है नहीं .
बंदसा उपबंध कोई है नहीं .
प्रेयसी से द्वंद कोई है नहीं
सांवरी सी गौर राधा भी नहीं
गीत प्यारा छंद कोई है नहीं .

प्रेमिका कमसिन है कोमल कामिनी
गज नहीं हिरनी सरीखी गामिनी
लरजती है ना वो नाजुक बेल है .
पाश उसका है या कोई जेल है .
न्यायकर्ता उस सरीखी ना मिले
उसके सम्मुख तो विधाता फेल है .

उसके होनेके हैं अपने फायदे
इश्क है ना प्यार जैसे कायदे .
रूठना मनुहार जैसा कुछ नहीं
प्यार में व्यवहार जैसा कुछ नहीं .
बंधा रहता हूँ मैं कच्ची डोर से
समर्पण अभिसार जैसा कुछ नहीं .

बहूत सीधी बात तुमसे कह रहा
तुकों में अतुकांत जैसा बह रहा .
अन्गृल प्रलाप जैसा भी नहीं
शीत में उत्ताप जैसा कुछ नहीं
पुन्य है ना पाप जैसा कुछ नहीं
पत्नी हो ना - आप जैसा कुछ नहीं .

धऱती रंग का डिब्बा है ?

पड़ौसी को
चुकन्दर उखाड़ते हुए देखता हूँ
और आश्चर्य से भर जाता हूँ
कि धरती के भीतर
कितना जामुनी रंग है
और मूलियों की झक्क सफ़ेदी
और गाजरों की लाली
और आलुओं का
हमारी चमड़ी जैसा छिलका
कितने सारे कंद अलग अलग रंग के
प्याज का रंग अलग
लहसुन का अलग

धरती के पास
क्या रंगों का ड्राइंग बॉक्स है ?

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- राजेश जोशी (अभी-अभी 'वसुधा' से पढ़कर)

बैर बढ़ाते मंदिर, मस्जिद !

27 नवंबर का दिन हो तो एक बारग़ी नहीं भुलाया जा सकता, आत्मकेंद्रित कवि मानकर - 1907 को आज के दिन जन्मे और सारे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में एक हरिवंश राय 'बच्चन' जी को । उनके बहुत कुछ लिखे हुए में इतना तो याद आ ही जायेगा बरबस -

मुसलमान और हिन्दू दो हैं,
एक मगर उनका प्याला,
एक मगर उनका मदिरालय,
एक मगर उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक,
मंदिर, मस्जिद में जाते ,
बैर बढ़ाते मंदिर, मस्जिद,
मेल कराती मधुशाला ।


Wednesday, November 4, 2015

तेरी दाल मेरी दाल !

दाल के मुहावरे आपने पढ़े सुने होंगे- घर की मुर्गी..., दाल में काला आदि...
लीजिए कुछ नए मुहावरे-

चोरी की दाल बघारना
दूसरे की दाल गलाना
तेरी दाल मेरी दाल
मुट्ठी में दाल
ये मुंह और दाल
ऊंट के मुंह में दाल
आदमी क्या जाने दाल का स्वाद
दूसरे की थाली की दाल ज्यादा गाढ़ी/पीली
काले में दाल
नमक में दाल
घर की दाल बकरी बराबर
दाल के भाव
दाल कमाना
नाहक दाल पकाना
दाल है तो थाली है
खयाली दाल