Friday, November 27, 2015

जख़्म !

इन गलियों से
बेदाग़ गुज़र जाता तो अच्छा था

और अगर
दाग़ ही लगना था तो फिर
कपड़ों पर मासूम रक्त के छीटें नहीं

आत्मा पर
किसी बहुत बड़े प्यार का जख़्म होता
जो कभी नहीं भरता ।

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- कुँवर नारायण 


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