Sunday, May 10, 2020

कवि योगेंद्र मौदगिल के फेसबुक पेज से ........

एक ग़ज़ल

राजनीत के वरदहस्त ने क्या-क्या दिन दिखलाये जी ।
  झुक-झुक कर सब पांव बहाने गला दबाने आये जी ।

जिस गीली मिट्टी से वो बंदूक बनाने वाले थे, 
 कईं खिलौने उस मिट्टी से जनता ने बनवाये जी ।
खबर छपी थी हरम के मालिक मौतों के सौदागर हैं,
  रब जाने मासूम यहां पर किससे मिलने आये जी ।
हिरणी के आगोश में बैठा उसका बच्चा सोच रहा,
  नदिया की नदिया जहरीली, ये कैसे दिन आये जी ।
हवा ने फिर पीपल को शायद कोई खबर सुनाई है, 
 पत्तो ने जो जोर-जोर से पंछी निरे उड़ाये जी ।





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