Sunday, June 6, 2021

हाँ पुरुष हूँ न...

कह नहीं पाता कई बार
अपने मन की 
उद्विग्नता को.. 
नहीं संभाल पाता 
कई बार,, 
मन के अंदर चल रहे
तूफान को.. 
हाँ उस वक़्त बस एक 
साथ की ख्वाहिश मेरी..
उस स्त्री की.. 
जो समझ सके 
तन ही नहीं.. 
मन के भावो को भी.. 
भूल जाना चाहता हूँ 
समक्ष उसके... 
कि हाँ पुरुष हूँ मैं. 
और उस पुरुष होने के 
दम्भ को भी.. 

रो सकूँ समक्ष उसके.. 
और कहूं.. 
हाँ हूँ पुरुष.. 
पर दर्द होता मुझे भी,  
बिलकुल तुम सा ही.. 
जो समझ मेरे दर्द को,, 
दुलार दें, माँ की तरह.. 
और मेरे बालों पर 
अपने हाथों, 
और गालों पर.
अपने स्नेह का, 
चुम्बन अंकित करें.. 
हाँ पुरुष हूँ.. 
पर फिर भी एक कंधा 
ढूंढता हूँ मैं भी 
सुकूँ के लिये
हमेशा संग तुम्हारे...
- अखिलेश मिश्र

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