Friday, July 27, 2012

सुषमा भंडारी की दो कवितायेँ !

सच !

सच!
बहुत जरूरी है
आर्थिक कवच
प्रत्येक देह के लिए
चाहे वो कथा संसार हो
या फिर संसार।

सच!
बहुत जरूरी है
चिरागों का जलना
प्रत्येक खुशी के लिए
चाहे वो घर हो
या फिर जिंदगी का सफर।

सच!
बहुत जरूरी है
यादों के पल
जीने के लिए
चाहे वो सुख दें
या दुःख।

सच!
बहुत जरूरी है
रिश्तों में विश्वास
चाहे वो गैर के लिए हो
या फिर
अपने लिए।

क्षमता

रेत हूँ
ढह जाऊँगी
नदी हूँ
बह जाऊँगी
पीड हूँ
सह जाऊँगी
आग हूँ
दह जाऊँगी!

मैं अबला नहीं
सबला हूँ
और न ही मैं
जड़ हूँ
न जड़ बनकर
रहना चाहती हूँ
मैं चेतन हूँ
और ये सब
जिंदगी के यथार्थ
जीने की
क्षमता है मुझमें।


सुषमा भंडारी

हिंदी की चर्चित गीतकार / हिंदी साहित्य में एम्.फिल. की उपाधि प्राप्त
अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित सुषमा भंडारी के कई कविता और गीत संग्रह हैं
साहित्य जगत मैं इन्हें माहिया और गीत विधाओं के लिए जाना जाता है

sushma.bhandari.547@facebook.com

No comments:

Post a Comment