Wednesday, March 14, 2012

रेवड़ की नदी !

रेवड़ की नदी ,
सतत प्रवाही शाश्वत .
पंहुंच वाले बांस,
गड़रियों के हाथ.
रेवड़ में छिपे कुत्ते,
संचालक के साथ .
हरी घास पर नदी ,
झील सी बिछा दी जाती .
जाओ -
हरी घास चरों,
उन उगाओ,
मेमनें जनो.
हमारे लिए-
भरदों अपने थन दूध से.
जिव्हा लपलपाते

नुकीले दांत चमकाते कुत्ते

नदी को हद में रखते

हांकते, हुडकते,पुचकारते गडरिये

ऊन उतारते,
दूध दुहते.
....
कुत्ते बदलते,
गडरिये बदलते पर,
बदलती नदी की किस्मत .
रेवड़ की नदी

सतत प्रवाही शाश्वत .
**
-विनय के जोशी

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