Saturday, October 20, 2012

रोक लेते हैं कदम बढ़के मेरे !

मंथर गति से - बहती हवा
कह रही है - अभी ठहर
कुछ देर यहीं रुक जा .

ये काले - कजरारे
उमड़ते -हुए मेघ .
कहाँ जायेगा - चल
यहीं बरस जा .

रोक लेते हैं कदम
बढ़के मेरे - जाने
अनजाने रास्ते .
अकेला छोड़ हमे -
यूँ आगे मत जा ।

- सतीश शर्मा
टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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