Saturday, October 27, 2012

मै अरविन्द हूँ !

मै कोई ख्वाब नहीं
जो टूटकर बिखर जाऊंगा
मै तो वो हकीकत का आइना हूँ
जो हर नजर और नजरो में नजर आऊंगा

मै कोई प्रेमी नहीं
जो किसी के प्यार में खुद को मिटाऊंगा
मै तो प्यार की घटा हूँ
जो जीवन आँगन में बरस जाऊँगा

मै कोई कहानी नहीं
जो सिर्फ किताबो में छप जाऊंगा
मै वो वर्तमान हूँ
जो सुनहले भविष्य की राह बनाऊंगा

मै वो फूल नहीं
जो बाज़ार में बिक जाऊंगा
मै वो कली हूँ
जो जीवन बगिया महकाऊंगा

मै कोई आंसू का बूँद नहीं
जो आँखों से टपक जाऊँगा
मै वो आँखे हूँ
जो आंसुओ को भी
ख़ुशी का तरन्नुम बनाऊंगा
मै कीचड में खिला वो अरविन्द हूँ
जो धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
मुझे याद करोगे दुनिया वालो
जब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाऊंगा

मै कोई नदिया की धार नहीं
जो सागर में खो जाऊंगा
मै वो किनारा हूँ
जो जीवन नदिया सा बहता जाऊँगा

मै वो कलमकार नहीं
जो वक़्त के हांथो बिक जाऊंगा
मै वो कास्तकार हूँ
जो काले अक्षरों में
रोशनी की बात लिख जाऊंगा

मै कोई पत्थर की मूरत नहीं
मै कोई रेत का महल नहीं
जो तूफ़ान में ढह जाऊंगा
मै मजबूत इरादों का वो चट्टान हूँ
जो हरपल तूफ़ान से तकराऊंगा

मै वो आशिक नहीं
जो किसी शोख की जुल्फों में खो जाऊँगा
मै वो जुल्फकार हूँ
जो वक्क्त की जुल्फों को भी सुलझाऊंगा

मै कोई चिंगारी नहीं
जो किसी चिता को जलाऊंगा
मै तो वो आग हूँ
जो मुर्दों को जीना सिखाऊंगा

मै कोई दर्द नहीं
जो किसी के दिल को जलाऊंगा
मै तो वो याद हूँ
जो ना दिल से जाऊँगा
और ना दिल का हो पाउँगा

मै दर्देदिल अरविन्द हूँ
दर्द ही मेरी पहचान है
सच कहूं तो दर्द ही अरविन्द ही दर्द की जान है
पर ज़िन्दगी की आखिरी बारात में भी
जग से हँसता हुआ जाऊंगा
पर धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
क्योकि मै अरविन्द हूँ !
मै अरविन्द हूँ !

यह कविता क्यों ?
मै अरविन्द हूँ
क्योकि मै कीचड में खिला हूँ
फिर भी ब्रम्ह के शीश पर शोभायमान हूँ
मै छोटा सा इन्सान हूँ
पर इन्सान में भी भगवन को देखता हूँ
खुद के लिए दर्द पर सबकी ख़ुशी की महत्वाकांक्षा है मेरी!

- अरविन्द योगी

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