Saturday, October 20, 2012

शून्य से शून्य तक......!!

सहेजता रहा ता-उम्र मै,
ढेर सारों शून्यों को !
आकर अचानक “एक”
बढ़ा गया उनके मूल्यों को !!
शून्य से ही रहा हर दम
मेरा बहुत निकट का नाता !
जब देखो तब, बेचारा
बिन बुलाए है चला आता !!
रोते ही रहते क्यों हम अक्सर,
इस अमूल्य शून्य को ले कर !
शून्यता भी तो जीवन में,
बहुत कुछ जाती है, दे कर !!
ना जाने क्यों लोग इस तरह
शून्य से रहते, सदैव घबराते !
इसके बाद ही तो गिनती में
आकडें बाकी, सब है आते !!
शून्य तो अक्सर
मिल ही जाता बिन तलाशे !
क्यों ना आगे बढ़कर
उसे ही, हम और जरा तराशे !!
बढ़ जाएँ जीवन में,
जब ढेर सारी शुन्यता !
समझों कि, है मिलने वाली
अब, जीवन को मान्यता !!

- दिनेश मिश्र

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