Thursday, October 25, 2012

साहित्यकार !

समाज हित का कथाकार,
यथार्थ चित्त का कलाकार,
दुर्गम पथों का पथकार,
सरल मतों का मतकार,
सत्य खोज में लगातार ,
उन्मुक्त ह्रदय से लगातार ,
पथ खोज लेता हर दौर में ,
समाज का सिपाही साहित्यकार !


कलम में जिसकी अनंत ललकार ,
जुल्म से अंत तक करता प्रतिकार ,
क्षितिज तक जाये जिसकी सीधी राह,
विश्व कल्याण की जिसकी बड़ी चाह,
कभी दहकाए शब्दों से जीवंत अंगार,
कभी महकाए पुष्पों में अनंत श्रृंगार ,
रंगरेज जो हर रंग से प्रकृति के वो ,
प्रकृति का सुकुमार बालक साहित्यकार!


स्वयं में स्यंभू अद्भुद सम्मान,
कहते जिसको जीवन का नाम,
हर पथ पर छोड़े मानव का पहचान,
फिर क्या तितली है क्या बादल है,
मानव हित में जो पल-पल पागल है
क्या है धरती क्या है आसमान,
जो अंधकार में लाये नव विहान,
कभी ना मरता वह शब्दकार,
कंटको भरा जिसका इतिहास ,
पुष्पों का जो देता एहसास,
हर जीवन के सबसे पास,
ज्ञान का दीपक दे जाता है ,
कोई जी नहीं सकता जीवन,
जो साहित्यकार जी पाता है!


प्रण-प्राण से सर्वस्व अपना दे जाता है,
मानवता के विश्व पटल में ध्रुव सा जगमगाता है,
खुद के आंसू छिपा शब्दों में जो हरदम हरपल,
जो जग को मुस्काने दे जाता है पल-पल,
वही हर दौर में साहित्यकार कहलाता है,
राष्ट्र की गौरवगाथा जो  लिख जाता है ,
ओज, श्रगार,अलंकार में हुंकार भर जाता है,
विश्व धरा को जो स्वर्ग बनाता है,
देश प्रेम में जीता हरदम और
देश हित में ही वह मर जाता है ,
अरे मरती तो बस यह देंह है,
साहित्यकार अमर हो जाता है ,
काले अक्षरों में रौशनी भर जाता है,
अमरज्योति साहित्यकार बान जाता है !


यह कविता क्यों ? 
सृजनकारी सृष्टि का सृजनकर्ता यदि ईश्वर है तो साहित्यकार इस बगिया का  मॉली  है जो मानव सेवा में कर्म पुष्पों की थाली है ! वन्दे माँ भारती

- अरविन्द योगी

No comments:

Post a Comment