Saturday, October 20, 2012

आज खुद पे से एतबार जाने लगा है !

दिल की बात करते करते -
ये दिल हाथ से जाने लगा है .
तमाम जिन्दगी - के सफ़र
का एक एक वाकया - नजर
के सामने आने लगा है .

जीने की बात कहता हूँ - और
हर पल मर रहा हूँ - ये मर्म
आज कुछ ज्यादा सताने लगा है .
काश ना - आखिरी हो ये कविता मेरी
आज खुद पे से एतबार जाने लगा है .

फलक पर चाँद है तो सितारे भी होंगे -
आस्मां में उड़ने को आज जी चाहने लगा है .
ऐ मेरे मेहरबान दोस्त सुन -
बादलों ने मुझको - चुनौती दी है
आज इनके पार जाने को मन इतराने लगा है ।

- सतीश शर्मा
टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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