Saturday, October 27, 2012

इस बार जन्मदिन पर क्या चाहिये तुम्हें ?

प्रेम में सबको कुछ न कुछ पाने की जल्दी थी
हम जब प्रेम में थे तो कहीं नहीं थे
सिर्फ़ अपने भीतर और बाहर आने के रास्ते बंद करने में सबसे तेज़
मैंने एक लम्बी सांस ली और फिर हमेशा के लिये सो गया
मेरी नींद मेरी बेहोशी के रंग की थी

जब हम प्रेम से निकले तो हिंसक बनैले पशु हो चुके थे
हमने प्रेम में सिर्फ़ अपने नाखून तेज़ किये थे
जो न मिल पाये उसे बिगाड़ने की आदिम आकांक्षा के साथ
हमने अपने साथ जो ज्यादतियां कीं
हम चाहते थे कि उनके निशान हमेशा बने रहे हमारी आत्माओं पर

तुम्हारा मेरे पास बिना किसी इच्छा के आना
दरअसल दुनिया के रिश्तों से चोट खाने का परिणाम है
मैं किसी कदर तुमसे अपनी चिता पर लेट कर मिला था
बिना किसी को इसकी भनक दिये हुये

तुम्हारी आंखों में वह जगह थी 

जहां जीवन का जिरहबख्तर पहने कोई हारा हुआ योद्धा
आराम कर सकता था दो पल
तुम तो जानती हो न
हारे हुओं के लिये नहीं होती कोई भी जगह कहीं भी

जिन्होंने मुझे लहूलुहान किया था अपने तीरों से
वे मुझे प्रेम करते थे
प्रेम जल थल और वायु में एक जैसा था
जैसी तुम थी निस्पृह मुझसे मिलते हुये 

पहली बार जल थल और वायु में एक सी
मानो अब दुबारा हम एक दूसरे से बात भी नहीं करेंगे कभी
तुमने मेरी आंखों में जो अनिश्चितता देखी थी
वह प्यार किये जाने की बेचैनी थी
मैं नहीं जी सकता था भरोसे के बाहर कोई जीवन
चाहे उसे धारदार बना उतार दिया जाये मेरी पीठ में हर बार

तुमसे प्रेम करने के लिये किसी से 

कोई शिकायत करने की ज़रूरत नहीं मुझे
जैसे तुम कभी नहीं कहती कि तुम्हारे डैने बहुत बड़े हैं

और मैं जहां भी जाउं तुम इन्हें फैलाये रखती हो मेरे उपर
मैं बहुत अच्छा अभिनेता हूं 

लेकिन सीमाओं का अतिक्रमण मेरे बस की बात नहीं
एक सहज जीवन और एक लम्बी सांस
जो तुमसे ली है और तुममें वापस छोड़ दूंगा
हर बार

तुम मुझे संभालती हो
तुममें खो जाना चाहता हूं कुछ इस तरह
कि तुम्हें भी खोजने के लिये अलगाना पड़े खुद को मुझ से

जितनी कविताएं मैंने तुम्हारे लिये लिखी हैं
वे उनसे बहुत बहुत कम हैं जितनी मैं सोचता हूं तुम्हारे लिये

आज के दिन यह कहना चाहता हूं धीमी आवाज़ में
दिनों का बदलना अपने बस में नहीं होता
हम सिर्फ प्यार किये जाने के लिये बनाये गये हैं
लाये गये हैं इस दुनिया में
शब्दों को गुम करने तुम्हारे भीतर आना है मुझे हर बार
तुम्हारी पलकों के नीचे वाले रास्ते से
भर लेना है तुम्हें अपनी बांहों में

और पूछनी है दुनिया की सबसे साधारण बात
‘‘इस बार जन्मदिन पर क्या चाहिये तुम्हें ?’’


- विमलचन्द्र पाण्डेय

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