Saturday, October 20, 2012

शब्द अनायास ही दौड़ने लगे ।

शब्द अनायास ही दौड़ने लगे ।
क्यूँ कभी मन को कचोटने लगे ।
बांध ह्रदय का उमड़ने लगा |
घटा अचानक बरसने लगी ।
तीर से शब्द कभी चुभने लगे ।
घाव गंभीर करने लगे ....।
व्यथा बन नदी सी बहने लगे
अधीर हो सागर में ज्वार से...
मन को उफनाने लगे.....।
क्या करिश्मा शब्द का जो...
शांत मन ..कभी स्थिर सा ।
कभी हंसाने गुदगुदाने लगे ।
जब भरे जोश में ....तो....
देश हित.... में योद्धा .....
जान अपनी ....लुटाने लगे ।

-अलका गुप्ता

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