Saturday, October 20, 2012

चल उठ खड़ा हो !

ये सुबह की अरुणाई है -
चिड़िया चहचहाई है -
देख धूप कितनी निकल आई है .
पड़ा क्यों है -चल उठ खड़ा हो .

परेशानियों का समुन्द्र -
चाहे कितना बड़ा हो .
कितने तूफान हों पर
मर्द है तू -चल उठ खड़ा हो.

चलने से ही रास्ते
मुश्किल कट जाया करते हैं -
ग़मों के बादल
छट जाया करते हैं -
ढूखों के अपार सागर भी -
घट जाया करते हैं -

फिर दुविधा क्यों है -मन में
रास्ता कट ही जायेगा
चाहे कितना बड़ा हो -
सोचता है क्या - चल उठ
खड़ा हो .

चलने में सुविधा है -
कम से कम ना चलने की
दुविधा से तो बचेगा -
प्रयास जरूरी है -
मुकाबला चाहे कितना कड़ा हो -
ज्यादा सोच मत - चल उठ खड़ा हो ।

- सतीश शर्मा
टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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