Saturday, October 20, 2012

मैं ही बस हूँ !

दिन की शुरुआत ...
बहुत अच्छी करनी चाही थी
सब मन का कहाँ होता है
हम और हमारा जीवन ..
बहुत घना बुना है कालीन की तरह
हर वर्ग इंच में पचासों गांठें
और हर ओर कुचलने को बेताब कदम
हर मन में अभीप्सा और कुंठा भी
प्यास है ..प्रतीक्षा भी
चेन से जकड़े कुंजरों की तरह
चैन की तलाश में भटकते हैं हम
मैं बलशाली
मैं युद्ध प्रवीण
मैं नीति पारंगत
मैं सर्वथा तथ्यात्मक
मैं ही बस हूँ न्यायप्रिय
हर तरफ ऐसी ही गूँज ......!!!


राघवेन्द्र (अभी-अभी)
१९/१०/१२

No comments:

Post a Comment