Thursday, October 25, 2012

दसों हर ले तो दशहरा हुआ ..

दसों हर ले तो दशहरा हुआ ..
एक भी बाक़ी बचा तो क्या ख़ाक हुआ ?
इस जमाने में इतनी गफलतें पहले से ही
एक अब और सही ..और सही ..और सही !

विजय किसकी और दशमी भी किसकी
यहाँ हर शख्स हारा है बाज़ी
कोई खूब से तो कोई अपनों से
अपने ही हाथ खुद हार गया है गाज़ी !

खुद बनो लो कोई मूरत कोई पुतला भी
जलाओ या फिर उसे विसर्जित करो
कभी फुर्सत मिले तो खुद को टटोलो जरूर
उसी दिन होगा दशहरा और दीवाली भी !

बच्चों को सुनाते आये ये सब हम बरसों
अगर होता असर तो हश्र ये न होता यारों
खेल इतना बिगड गया की अब क्या बोलूं
नए किस्से -कहानियां अब गढनी होंगी !

राघवेन्द्र ,
बस अभी ..:((
२४/१०/१२

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