विजय किसकी और दशमी भी किसकी
यहाँ हर शख्स हारा है बाज़ी
कोई खूब से तो कोई अपनों से
अपने ही हाथ खुद हार गया है गाज़ी !
खुद बनो लो कोई मूरत कोई पुतला भी
जलाओ या फिर उसे विसर्जित करो
कभी फुर्सत मिले तो खुद को टटोलो जरूर
उसी दिन होगा दशहरा और दीवाली भी !
बच्चों को सुनाते आये ये सब हम बरसों
अगर होता असर तो हश्र ये न होता यारों
खेल इतना बिगड गया की अब क्या बोलूं
नए किस्से -कहानियां अब गढनी होंगी !
राघवेन्द्र ,
बस अभी ..:((
२४/१०/१२
यहाँ हर शख्स हारा है बाज़ी
कोई खूब से तो कोई अपनों से
अपने ही हाथ खुद हार गया है गाज़ी !
खुद बनो लो कोई मूरत कोई पुतला भी
जलाओ या फिर उसे विसर्जित करो
कभी फुर्सत मिले तो खुद को टटोलो जरूर
उसी दिन होगा दशहरा और दीवाली भी !
बच्चों को सुनाते आये ये सब हम बरसों
अगर होता असर तो हश्र ये न होता यारों
खेल इतना बिगड गया की अब क्या बोलूं
नए किस्से -कहानियां अब गढनी होंगी !
राघवेन्द्र ,
बस अभी ..:((
२४/१०/१२
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