Monday, April 18, 2011

महात्मा !

महात्मा या महापुरुष का उपदेश उनकी वाणी से नहीं, वरन् उनके जीवन कृत्यों से होता है । उनकी एक-एक चेष्टा सहज ही सांसारिक विपत्तियों के विनाश का रास्ता प्रशस्त करती है । कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर लगाती है, और महान कल्याण की प्राप्ति कराने में अहम् भूमिका निभाती है । उनका मूक व्याख्यान जितना प्रभावशाली होता है, उतना संसारासक्त मानवों के लाख-लाख कलापूर्ण व्याख्यान नहीं होते । वस्तुतः उनके जीवन में घटित उपदेशों की तुलना केवल वाणी के उपदेशों से नहीं की जा सकती ।
महात्मा या महापुरुष के लिए यह आवश्यक नहीं कि भौतिक जगत में उनकी प्रसिद्धि हो ही और वे लोगों में महात्मा या महापुरुष माने जाते हों । वरन् कहे माने जाने वाले महात्माओं में वास्तविक महात्मा बिरले ही होते हैं । सच्चे महात्मा को सर्वत्र, सर्वस्व, मात्र वासुदेव भगवान के अतिरिक्त और कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होता । जहाँ देखो, वहाँ उन्हें प्रभु स्वरूप ही नजर आता है ।
महात्मा न तो अपने महात्मापन ढ़िढ़ोरा पीटा करते हैं, न विज्ञापन करते हैं उनका सहज स्वाभाविक अस्तित्व जगत के जीवों का कल्याण करने वाला होता है । वे चाहे प्रगट रहे या अप्रगट, लोग उन्हें जाने या न जानें, वे जहाँ, जिस जगह होते हैं, वहाँ दैवी सम्पत्ति और भगवद्भाव प्रागरय होने लगता है, और उनकी आध्यात्मिक सुरभि फूलों के बगीचे की स्वाभाविक सुगन्ध की तरह चारों ओर महकने लगती है, और वातावरण को देवत्व प्रदान करती है ।

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