Monday, April 4, 2011

स्त्री को बचना चाहिए !

स्त्री को बचना चाहिए
इसलिए नहीं कि
उसे तुम्हारी प्रेयसी बनना है,
उसे तुम्हारी पत्नी बनना है ।
इसलिए नहीं कि उसे तुम्हारी बहन बनना है।
इसलिए भी नहीं
कि
वह तुम्हारी जननी है और तुम जैसों को आगे भी पैदा करती रहे।
उसे बचना चाहिए,
बल्कि उसे बचने का पूरा हक़ है - राजनैतिक हक़,
इसलिए कि वह भी तुम्हारी तरह हाड़-माँस की इन्सान है।
तुम ने उसे देवमन्दिर कहा और बना दिया देवदासी।
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते..' और 'कार्येषु दासी शयनेषु रम्भा' को
एक साथ तुम्हारा ही पाखण्डी दर्शन साध सकता था !
देवी बनाना या उसे श्रद्धा बताना भी तो अपमान है
उस की इन्सानियत का -
उस की इच्छा, वासना, भोग-त्यागमय सहज स्पन्दनों का
या है उसे जड़ता प्रदान कर देना,
पत्थर में तब्दील कर के।

-डॉ. रवीन्द्र कुमार पाठक

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