Wednesday, April 13, 2011

छणिकायें!!

जाने कैसी चाह ये जाने कैसी खोज
एक छाँव की आस में चलूँ धूप में रोज़ ?


फिर निराश मन मैं जगी नवजीवन की आस
चिड़िया रोशनदान पर फिर से लाई घास....!

- प्रकृति राय

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