Saturday, March 26, 2011

तुम होते तो...

सपनों के महल में हम भी रहतें
चलते आसमान में
सितारों के पदचाप के साथ
हम भी मिलातें सुरताल
देखतें,
इस झिलमिल दुनिया को
अगर तुम होते...
और ही होता मेरे बहकने का अंदाज़
ज़ुबां पर यूं न पसरा होता सन्नाटा
चीरते हुए जो हर शोर को
आज दे रहा है यूं चुनौति
काश...
कि तुम होते
दुलारते,
मुझे पुचकारते
तो शायद मैं यूं ढीढ न होती
अक्खड़
जैसे पठार खड़ा हो
तूफान, बरसात
बदरंग कर देने वाले
थपेड़ों के बावजूद
निडर, निष्ठुर
न ख़ुशी में ख़ुशी
न ग़म में ग़म
काश कि तुम होते
मेरी आंखों से आंसू तो छलक गए होते...

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