Tuesday, March 29, 2011

मैं ककड़ी पर नहीं कड़ी!



नाजुक बदन रंग है धानी
मैं बनती सलाद की रानी
दुबली-पतली और लचीली
कभी-कभी पड़ जाती पीली
सबकी हूँ जानी-पहचानी
मुझमे होता बहुत ही पानी
गर्मी में होती है भरमार
हर सलाद में मेरा शुमार
करते सब हैं तारीफें मेरी
खीरे की मैं बहन चचेरी
हर कोई लगता मेरा दीवाना
हो गरीब या धनी घराना
खाने में करो न सोच-बिचार
हल्का-फुल्का सा हूँ आहार
विटामिन ए, सी और पोटैसियम
सब रहते हैं मुझमें हरदम
मौसम के हूँ मैं अनुकूल
आँखें हो जातीं मुझसे कूल
अंग्रेजी में कहें कुकम्बर
खाते हैं सब बिन आडम्बर
ब्यूटीपार्लर जो लोग हैं जाते
पलकों पर हैं मुझे बिठाते
मुखड़े करती मलकर सुंदर
दूर करुँ विकार जो अन्दर
स्ट्राबेरी संग प्याज़, पोदीना
मुझमें मिलकर लगे सलोना
बटर, चीज़ संग टमाटर
मुझे भी रखो सैंडविच के अंदर
कभी अकेले खाई जाती
कभी प्याज-गाज़र संग भाती
अगर रायता मुझे बनाओ
उंगली चाट-चाट कर खाओ
यदि करते हो मुझको कद्दूकस
तो नहीं फेंकना मेरा रस
गोल-गोल या लम्बा काटो
खुद खाओ या फिर बांटो
सिरके में भी मुझको डालो
देर करो ना झट से खा लो
और भी सोचो अकल लगाकर
सब्जी भी खाओ मुझे बनाकर.

--शन्नो अग्रवाल

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