Tuesday, March 29, 2011

चलो गंगा में फिर मुझको बहा दो ।

उजालों की ये सब बकबक बुझा दो
मुझे लोरी सुना कर माँ सुला दो

तुम्हे हम धूप सा माने हुए हैं
मेरे मन का ये अँधेरा मिटा दो

दिया हूँ मैं दुआ के वास्ते तुम,
चलो गंगा में फिर मुझको बहा दो ।

खुशी गम होश बेहोशी सभी हैं,
चलो जीवन से अब जलसा उठा दो ।

ये पानी है तसव्वुर का जो ठहरा,
तुम अपनी याद का कंकर गिरा दो ।

रहे क़ायम रवायत ये दुआ की,
मेरी ऐसी दुआ है, सब दुआ दो ।

तुम्हारी याद की बस्ती में हूँ फिर,
मुसाफिर मान कर पानी पिला दो ।

लो इसकी आंच कम होने लगी है,
ये आतिश एक मसला है, हवा दो ।

यूनिकवि: स्वप्निल आतिश

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