Tuesday, March 29, 2011

तब समझना कि यार होली है !

गुरु देव पंकज जी ने अपनी ग़ज़लों की कक्षा में एक होम वर्क दिया था.तभी "होली" काफिये पर ये ग़ज़ल लिखी थी.उस काफिये पर बहुत से सहपाठियों ने बहुत उम्दा रचनाएँ लिखीं. उम्मीद करता हूँ कि मेरा प्रयास भी शायद पसंद आए.

प्यार जिनके लिए ठिठोली है
सोच उनकी हुजूर पोली है

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है

याद का यूँ नशा चढ़े तेरी
भंग की ज्यूँ चढाई गोली है

गुफ्तगू का मज़ा कहाँ प्यारे
बात गर सोच सोच बोली है

मस्तियां देख कर नहीं आतीं
ये महल है कि कोई खोली है

बोल कर झूट ना बचा कोई
सोच मेरी जनाब भोली है

आप उस पर यकीन मत करना
वो सियासत पसंद टोली है

खूब रब ने दिया तुझे नीरज
दिल मगर क्यों बिछाए झोली है

- कवि कुलवंत सिंह

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