Tuesday, March 29, 2011

धरा का हो गया तन-मन लाल !

पंछी करें टीका
अम्बर भाल
धरा का हो गया तन-मन लाल
फागुन की
अँगुलियों में
सजा गीतों का छल्ला
नीले पीले
रंग चले
मचाते हुए हो हल्ला
ईद मिल होली से पूछे हाल
धरा का हो गया तन-मन लाल
रंगों भरी
चादर हटा
गुनगुनी धूप झांके
गुलाबी ठण्ड
थाम के चुनर
गलियों गलियों भागे
टेसू खिले हर बाग हर डाल
धरा का हो गया तन-मन लाल
गोरी की
हँसुली टूटी
नील पड़ा था हाथ
सजना की
ठिठोली हुई
पांव फिसला था हाट
लज्जावश हुए सुर्ख उसके गाल
धरा का हो गया तन-मन लाल
पापड़ चिप्स
छज्जे फैले
ताके बैठा कौवा
घर में
गुझिया चहक रही
बाग भटक रहा महुआ
ठंढाई पीके बदली चाल
धरा का हो गया तन-मन लाल

- रचना श्रीवास्तव

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