Monday, March 28, 2011

मुआवज़े !

मुआवजा ...
हाँ ठीक सुना तुमने
मुझे मुआवजा चाहिए
मुझे मुआवजा दो...
म्में...म्में...
मैं चीख़ रहा हूँ
चिल्ला रहा हूँ
हाँ.. हाँ मैं चिल्ला रहा हूँ
चीख़ रहा हूँ
मेरे गले की नसें
चटख कर
ढीली पड़ने से पहले तक
मैं चीखता रहूँगा
मेरी आँखों में उतर आया
ख़ून
बहने
टपकने
क्यों न लगे
मैं उसके बाद तलक चिल्लाता रहूँगा ...
मुआवजा बांटने का
बड़ा शौक़ है न तुम्हे
अब देते क्यों नही मुझे मुआवजा...!

रेल या बस दुर्घटना...
सड़क या कोई और दुर्घटना..
या किसी फर्जी मुठभेड़ में..
किसी जहरीले गैस काण्ड में...
नहीं...नहीं..शायद किसी
आतंकी या नक्सली हमले में..
या फिर किसी अंधी भीड़ ने ही..
पता नहीं ..?
मुझे ठीक से याद भी नहीं
इसलिए कि वक़्त मुझे बूढ़ा करके गुज़र गया...

लेकिन, अपनी लिजलिजी और झुर्रीदार
छाती ठोक कर कहता हूँ ..
मेरे बेटे की मौत मुआवज़े लायक है
इनमें से किसी एक में मेरा बेटा मर-खप गया..
दे दो हरामखोरों...
जिससे अपनी बेटी की शादी करा सकूं..

- सनी कुमार

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