Tuesday, March 29, 2011

पिता का बूढा होना !

तुम बुड्ढे हो गए पिता
अब तुम्हें मान लेना चाहिए
आने वाला है ‘द एण्ड’

तुम बुड्ढे हो गए पिता

कि तुम्हारा इस रंगमंच में
बचा बहुत थोड़ा-सा रोल
ज़रूरी नहीं कि फिल्म पूरी होने तक
तुम्हारे हिस्से की रील जोड़ी ही जाए

इसलिए क्यों इतनी तेज़ी दिखाते हो

चलो बैठो एक तरफ
बच्चों को करने दो काम-धाम...

तुम बुड्ढे हो गए पिता

अब कहाँ चलेगी तुम्हारी
खामखाँ हुक्म देते फिरते हो
जबकि तुम्हारे पास कोई
फटकता भी नहीं चाहता

तुम बुड्ढे हो गए पिता

रिटायर हो चुके नौकरी से
अब तुम्हें ले लेना चाहिए रिटायरमेंट
सक्रिय जीवन से भी...
तुम्हें अब करना चाहिए
सत्संग, भजन-पूजन
गली-मुहल्ले के बुड्ढों के संग
निकालते रहना चाहिए बुढ़भस

तुम बुड्ढे हो गए पिता

भूल जाओ वे दिन
जब तुम्हारी मौजूदगी में
कांपते थे बच्चे और अम्मा
डरते थे
जाने किस बात नाराज़ हो जाएं देवता
जाने कब बरस पड़े
तुम्हारी दहशत के बादल...

तुम बुड्ढे हो गए पिता

अब क्यों खोजते हो
साफ धुले कपड़े
कपड़ों पर क्रीज़
कौन करेगा ये सब तुम्हारे लिए
किसके पास है फालतू समय इतना
कि तुमसे गप्प करे
सुने तुम्हारी लनतरानियां
तुम इतना जो सोचो-फ़िक्र करते हो
इसीलिए तो बढ़ा रहता है
तुम्हारा ब्लड-प्रेशर...
अस्थमा का बढ़ता असर
सायटिका का दर्द
सुन्न होते हाथ-पैर
मोतियाबिंद आँखें लेकर
अब तुमसे कुछ नहीं हो सकता पिता
तुम्हें अब आराम करना चाहिए
सिर्फ आरा....म!

मैं भी हो जाऊँगा
एक दिन बूढ़ा
मैं भी हो जाऊँगा
एक दिन कमज़ोर
मैं भी हो जाऊँगा
अकेला एक दिन
जैसे कि हो गए हैं पिता
बूढ़े, अकेले और कमज़ोर
मैं रहता हूँ व्यस्त कितना
नौकरी में
बच्चों में
साहित्यकारी में
बूढ़ा होकर क्या मैं भी हो जाऊँगा
बातूनी इतना कि लोग
कतराना चाहेंगे मुझसे
बच कर निकलना चाहेंगे मुझसे
मैं सोचता नहीं हूँ
कि मैं कभी बूढ़ा भी होऊँगा
कि मैं कभी अशक्त भी होऊँगा
कि मैं कभी अकेला भी होऊँगा
तब क्या मैं पिता की तरह
रह पाऊंगा खुद्दार इतना
कि बना सकूँ रोटी अपनी खुद से
कि धो सकूँ कपड़े खुद से
कि रह सकूँ किसी भूत की तरह
बड़े से घर में अकेले
जिसे मैंने अपने पिता की तरह
बनवाया था बड़े शौक से
पेट काटकर
बैंक से लोन लेकर
शहर के हृदय-स्थल में!
पता नहीं
कुछ भी सोच नहीं पाता हूं
और नौकरी में
बीवी, बाल-बच्चों में
साहित्यकारी में रखता हूँ खुद को व्यस्त
मेरे सहकर्मी भी
नहीं सोच पाते
कि कभी होएंगे वे बूढ़े, कमज़ोर और अशक्त
अक्सर वे कहते हैं
कि ऐसी स्थिति तक आने से पहले
उठा लें भगवान
तो कितना अच्छा हो...

- अनवर सुहैल

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