Saturday, March 26, 2011

ग्लैमर !!

कितना डराता है तुम्हे

तुम्हारा चेहरा???

जब तुम उतार देती हो

रंग-रोगन

चेहरे पर बन आए उस निशान को देखकर

क्या किलस उठती हो तुम...

जिसे झुर्रियां कहते हैं???

शायद दुख से भर जाती हो तुम

इसलिए आंख के तुरंत नीचे

उग आया है काला धब्बा

और कई बार कपाल पर दिखती हैं सिलवटें

दुबली होने का और कितना प्रयत्न करोगी तुम

खुद को बिना साज-सज्जा के

पहचान पाती हो तुम???

बड़ बड़ बड़ बड़ तुम्हारे होंठ

उफ्फ

सुंदर जुल्फों का राज

लोगों को बताओगी कभी???

कितना भ्रम फैलाया है तुमने,

कितनी-कितनी युवती-किशोरी रोज ही देखती है सपने

तुम्हारे जैसा होने का...

तुम कभी आओगी उस मंच पर

जहां से बयां होगा सिर्फ सच

उसे सुनेंगे तुम्हारे बच्चे भी

जो तबतक बड़े हो गए होंगे

लेकिन याद होगा उसे उसका पूरा बचपन

कह पाओगी कभी अपनी व्यथा

या फिर उसे भी ढाप दोगी किसी गाढ़े रंग से

जैसे ढाप देती हो आंखों के नीचे पड़े गढ्ढे को..

या फिर उगल दोगी सच

खत्म करोगी द्वंद

स्त्री, जागो

वस्तु मत बने रहो

वो तो तुम पहले भी थी

फिर आज क्या बदला तुमने ?

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