Monday, December 31, 2012

नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।

नूतन भाव की सौरभ से सुरभित हो अन्तर्मन उपवन।
शुभागमन हो मंगलमय, नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।
घन विषाद के घटे, मिटे अवसाद, कष्ट किंचित न रहे।
हर्ष और आह्लाद से मानस कोई भी वंचित न रहे।
नव आयामी हो आशाएँ नभ छूती अभिलाषा हो।
सृष्टि में साकार स्वयं सुख की सच्ची परिभाषा हो।
किलकारी में परिवर्तित हो कहीं नहीं गूंजें क्रन्दन।
शुभागमन हो मंगलमय, नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।
विश्वगुरु की पदवी पाकर गर्वित फिर हो भारतवर्ष
सोने की चिड़िया बनकर फिर छू ले उन्नति का उत्कर्ष।
पूरब फिर से पाठ पढ़ाए, पश्चिम झुककर नमन करें।
सकल सृष्टि की शंकाओं का हिन्द सभ्यता शमन करें।
नवल रूप में प्राप्त करें हम पुनः पुरातन वो वन्दन।
शुभागमन हो मंगलमय, नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।
सकल विश्व हो गेह नेह का, स्वरित ध्वनित सुर सरगम हो।
धरती से नभ तक लहराता प्रेम भाव का परचम हो।
हो विनष्ट पथभ्रष्ट प्रवृत्ति, संचारित संस्कार रहें।
मानव मन में मानवता की सदा सदा जयकार रहें।
नहीं अपेक्षा अधिक और कुछ, यहीं अपेक्षित परिवर्तन।
शुभागमन हो मंगलमय, नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।
- मंजरी शुक्ला

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