Tuesday, December 4, 2012

नारी !

जीवन की आपा धापी में ,
अपना ही जीवन जीना भूल गयी |
कभी बेटी,बहन कभी पत्नी ,माँ बन जिया ,
अपने ही जीवन को तूल देना भूल गयी |
जीवन में अपनी कोई कद्र नहीं ,
समाज कहता है हम नहीं स्वतन्त्र कभी |
वसूलों की जंजीरों में जकड़ी ,
जीवन यापन मैं कर रही |
खुशियाँ सारी दूजो पर लुटा ,
गम को अपने सीने से लगा |
खामियों को अपने सर-माथे पर सजा ,
सुखों का दे दूजों को मजा ,
जीवन यापन ही कर रही ,
जीवन के झंझावतों को सह चुप ही रह रही |
         

 ||सविता मिश्रा||

1 comment:

  1. नारी !
    जीवन की आपा धापी में ,
    अपना ही जीवन जीना भूल गयी |
    कभी बेटी,बहन कभी पत्नी ,माँ बन जिया ,
    अपने ही जीवन को तूल देना भूल गयी |
    जीवन में अपनी कोई कद्र नहीं ,
    समाज कहता है हम नहीं स्वतन्त्र कभी |
    वसूलों की जंजीरों में जकड़ी ,उसूलों की ज़िन्दगी में जकड़ी ,.........
    जीवन यापन मैं कर रही |
    खुशियाँ सारी दूजो पर लुटा ,
    गम को अपने सीने से लगा |
    खामियों को अपने सर-माथे पर सजा ,
    सुखों का दे दूजों को मजा ,
    जीवन यापन ही कर रही ,
    जीवन के झंझावतों को सह चुप ही रह रही |

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