Tuesday, December 11, 2012

कलम क्यूं बेबाक हो जाती है ?

























ये कलम भी न मानती ही नहीं
भी कभी बेबाक बोल देती है
जानती है इसे पता है ये आभासी दुनिया है

यहाँ कभी कभी तो इंसान की पहचान ही संदिग्ध होती है
क्या बुरा मानना क्यूं दुखी होना
illusion - world --मतलब ही यही होता है
कुछ भी बोल दो
ये तो दस्तूर है यहाँ का
पर बेचारी कलम क्या जाने उसे नहीं आती हिप्पोक्रेसी
वो बोली मुझे क्या पता
मुझे तो लगा ये सपनों की दुनिया है
यहाँ मै आराम से चल सकती हूं
और तुम्हारी जो वाल है
वो डायरी है तुम्हारी 
सफे दर सफे सैर करना ह्क़ है मेरा
फिर भडक कर बोली कलम मुझसे
क्या करना है तुम्हें
मेरा जो दिल करेगा
लिखूंगी कभी तुम्हारे दिल की बात
तो कभी आसपास की हलचल
क्यों परेशान हो
 
तुम लेखक कवि
या साहित्यकार नहीं हो तो क्या
कलम हूं मै तुम्हारी
जब तक मेरी तुम्हारी निभेगी
मै तुम्हारी डायरी पर चलती रहूंगी
हाँ ये बात और है थोड़ी बेबाक हूं मै
लिख देती हूं
पर किसी का अपमान तो नहीं करती
अपनी ही वाल पर चलती हूं न
अपने सफे पर सैर करना कोई गुनाह है क्या
चलो छोडो जाने दो
क्या सोचना इस पर
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगो का काम है कहना !

- दिव्या शुक्ला

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