Tuesday, December 4, 2012

थोडा करीब तो आओ !

आधी रात बीत चुकी थोडा करीब तो आओ
लेकर आगोश में अपनें कुछ तो तरस खाओ


मौसम तो आयेंगे और आकर जाते ही रहेंगे
हम एक दूजे से रुठते और मनाते ही रहेंगे


आज शबनमी बूँदे फूलो को तरस रहे हैं

ऋतु है जवाँ आज और उमंगे बरस रहे हैं


" दीश " के उलझन को कुछ तो सुलझाओ

आधी रात बीत चुकी थोडा करीब तो आओ


लेकर आगोश में अपनें कुछ तो तरस खाओ


.....संकलन ॥ मेरी कविता ॥

  - जगदीश पांडेय " दीश "

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