Saturday, February 16, 2013

ढाई आखर प्रेम के !

आंखें भीगी
पलकों में नमी सी है
न जाने क्यूँ ये लब
हंसी को कम

अश्को को ज्यादा चूमने लगे हैं...
मौन था मन ,ह्रदय निस्पंद
झुके हैं चक्षु ,मंजुकपोल
और वो न जाने क्यूँ
छुपाते रहे सूखे पड़े उन
अधरों की सुर्ख़ियों में

वो ढाई आखर प्रेम के.....
- राहुल त्रिपाठी

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