Thursday, February 21, 2013

अजीज आज़ाद की कवितायेँ !

१.

मैं तो बस ख़ाके-वतन हूँ गुलो-गौहर तो नहीं
मेरे ज़र्रों की चमक भी कोई कमतर तो नहीं

मैं ही मीरा का भजन हूँ मैं ही ग़ालिब की ग़ज़ल
कोई वहशत कोई नफ़रत मेरे अन्दर तो नहीं

मेरी आग़ोश तो हर गुल का चमन है लोगों
मैं किसी एक की जागीर कोई घर तो नहीं

मैं हूँ पैग़ाम-ए-मुहब्बत मेरी सरहद ही कहाँ
मैं किसी सिम्त चला जाऊं मुझे डर तो नहीं

गर वतन छोड़ के जाना है मुझे लेके चलो
होगा अहसास के परदेस में बेघर तो नहीं

मेरी आग़ोश तो तहज़ीब मरकज़ है 'अज़ीज़'
कोई तोहमत कोई इल्ज़ाम मेरे सर तो नहीं !


२.

ज़मीं है हमारी न ये आसमाँ है
जहाँ में हमारा बसेरा कहाँ है

ये कैसा मकाँ है हमारे सफ़र का
कोई रास्ता है न कोई निशाँ है

अभी हर तरफ़ है तसादुम की सूरत
सुकूँ ज़िन्दगी का यहाँ न वहाँ है

कभी हँसते-हँसते छलक आए आँसू
निगाहों के आगे धुआँ ही धुआँ है

शराफ़त को उजड़े मकानों में ढूँढो
शहरों में इसका ठिकाना कहाँ है

चलो फिर करेंगे उसूलों की बातें
अभी तो हमें इतनी फ़ुरसत कहाँ है !


३.

तुम ज़रा प्यार की राहों से गुज़र कर देखो
अपने ज़ीनो से सड़क पर भी उतर कर देखो

धूप सूरज की भी लगती है दुआओं की तरह
अपने मुर्दार ज़मीरों से उबर कर देखो

तुम हो खंज़र भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें
प' ज़रा प्यार से बाँहों में तो आ कर देखो

मेरी हालत से तो ग़ुरबत का गुमाँ हो शायद
दिल की गहराई में थोड़ा-सा उतर कर देखो

मेरा दावा है कि सब ज़हर उतर जायेगा
तुम मेरे शहर में दो दिन तो ठहर कर देखो

इसकी मिट्टी में मुहब्बत की महक आती है
चाँदनी रात में दो पल तो पसर कर देखो

कौन कहता है कि तुम प्यार के क़ाबिल ही नहीं
अपने अन्दर से भी थोड़ा सा संवर कर देखो !
 

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