Thursday, February 21, 2013

मै उड़ न सका !


रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कह दिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका

विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने समझाया
सोना होना ज़रुरी है
मिट्टी का नहीं है मोल
सोना है अनमोल
मुझे खलिहानोँ में होना था
बारिश धुप में भिगोना था
पर भट्टी में जलाया गया मुझे
की लोगो की चाह में सोना था
पर मै मिट्टी था
मुझे मिट्टी ही होना था
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका

क्या सोना होना इतना ज़रुरी है
क्या सोना फसल बनेगा
क्या सोना पेट भरेगा
क्या सोना आस्मा से बरसेगा
और बीजो में जीवन भरेगा
सोना कीमती है
पर मै भी हू अनमोल
पर मुझे इतना तपाया गया
की मै मिट्टी भी न रह सका
विचार मेरे जल गए
नसों में लड़ने की कूबत थी
सब भाप बन निकल गए
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका

सासे लेना धडकना
दुनिया के रंग रंगना चहकना
ये मेरी ताकत थी
पर उसे समझ ना आया
जब भी तोला मुझे
उसने सोने के सिक्को से
हमेशा कम पाया
मै चलने के लिए बना था
मै उड़ न सका

 
शशिप्रकाश सैनी 

http://www.kavishashi.com/2011/12/blog-post_26.html#.UgmvcNIwcWY 

1 comment:

  1. अनिरुध्द जी
    आप ने मेरी कविता को अपने ब्लॉग पे जगह दी अच्छा लगा
    यहाँ मेरे नाम में गलती रह गई
    सुधर कर दे तो अच्छा रहेगा (शशिप्रकाश सैनी)

    इस कविता का लिंक है ये
    नाम के साथ साँझा कर दे तो अच्छा रहेगा
    http://www.kavishashi.com/2011/12/blog-post_26.html#.UgmvcNIwcWY

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