समय के अन्जान जाल मे, रोज़ औरी उल्झत बानी
कागज़ के तनी मनी टुकी खातीर, खुद के बेचले बानी
दुनिआ मे जन्हा देख तानी, अकेले ही लवुक तानी
हाथ से औरी तेजे निकलल, जब जब धयीले बानि
ईहे बुझ न पईनी आजो, ज़िन्दगी ह कि पानी
कबो प्रेम कबो बैर, कबो सुख कबो चैन
कबो हमार कबो तोहार, कबो तीज कबो त्योहार
कबो घर कबो परिवार, कबो रिश्ता कबो व्यव्हार
एह दलदल मे अन्दर और अन्दर धन्सल जा तानी
ईहे बुझ न पईनी, ज़िन्दगी ह कि पानी
कबो राह के कोसनी, कबो अपना के दोष देनी
कबो रात भर जगनी कबो, कबो मन भर सुतनी
जौन पावे के सपना रहे, ओकरा के एक पल मे तुड़ानी
सफ़र करत उमीर केट्ल , अबहु ओही मोड़ पे खड़ा बानी
ईहे बुझ न पईनी, ज़िन्दगी ह कि पानी
सब कहेला कि दुनिआ रन्गमन्च ह, आ हमनी के किरदार
त काहे सबके माया होला, काहे होला जीत अवरु हार
काहे ना बहेला अपनापन के नदी आ पवित्रतता के बयार
काहे होला रोज़ लड़ाई, एकर उत्तर खोज तानी
ईहे बुझ न पईनी, ज़िन्दगी ह कि पानी
बचपन मे सभे लवुके आपन, चाहनी तवने मीलल
मोह आ माया ऐसन घेरलस, चाहीं कुल्ही पावल
एहि बीच मे अपना के खो के, चाही किसमत लीखल
मुथी से जैसे बालु फिन्सले, खुशी बहाव तानी
ईहे बुझ न पईनी, ज़िन्दगी ह कि पानी
तुडले टूटट नायीखे, राह कौनो सुझत नैखे
कैसे आपन बन्धन खोली, चाभी कौनो मिलत नैखे
अब जब ज़िन्दगी के राह मिलल, जीये के चाह जागल
आपन बाचल दीन के उन्गरी पे गीन तानी
ईहे बुझ न पईनी, ज़िन्दगी ह कि पानी
हाथ से औरी तेजे निकलल, जब जब धयीले बानि
ईहे बुझ न पईनी आजो, ज़िन्दगी ह कि पानी

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