Monday, September 17, 2012

उन्होंने ने तब लिखा, हमने अब पढ़ा !

----------उन्होंने ने तब लिखा
हमने अब पढ़ा ---------
----------------------- जब भी उनको पढते हैं
खुद से सवाल करते हैं
------------------ क्या उन्होंने तभी हमारा
...मन पढ़ लिया था -------------
-------------या अपनी रूह का एक टुकड़ा हममें बसा गई वो
पर हर किसी को इमरोज नहीं मिलते ----
----------इसके लिये अमृता होना पड़ेगा --और वो
एक ही थी बेमिसाल ---
मै -----
-----------
आसमान जब भी रात का
और रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं
सितारे मुबारकबाद देते हैं
क्यों सोचती हूं मैं
अगर कहीं .........
मै , जो तेरी कुछ नहीं लगती

जिस रात के होठों ने कभी
सपने का माथा चूमा था
सोच के पैरों में उस रात से
इक पायल सी बज रही है ...

इक बिजली जब आसमान में
बादलों के वर्क उलटती है
मेरी कहानी भटकती है ...
आदि ढूंढती है, अंत ढूंढती है ....

तेरे दिल की एक खिड़की
जब कहीं बज उठती है
सोचती हूं ,मेरे सवाल की
यह कैसी जुर्रत है !

हथेलियों पर
इश्क की मेहँदी का कोई दावा नहीं
हिज्र का एक रंग है
और तेरे ज़िक्र की एक खुशबू .......

मै , जो तेरी कुछ नहीं लगती

-अमृता प्रीतम



2 comments:

  1. प्रेम तो प्रेम है ...हर मायने में ...अमृता प्रीतम जी और इमोरज़ जी को अपने प्रेम में वो स्थान मिल गया ...जो हर किसी को नहीं मिलता
    पर फिर भी प्रेम आज भी जिन्दा हैं हर किसी के दिल में ....सादर

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  2. वाह अंजू जी क्या बात है, आपने बहुत खूब कहा !

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