Sunday, September 2, 2012

चला था राह में कुछ सोच गहरी बात ऐ राही......

चला था राह में कुछ सोच गहरी बात ऐ राही......
सफ़र में साथ हैं कितने यहाँ कितने हीं साथी हैं......

कदम कुछ यूँ बढ़ाता मै, गिरा तो कोई थामेगा...
बचा लेगा मुझे ठोकर से कोई तो संभालेगा...

बहारों में थे कितने यार और कितने याराने थे...
पराया ना था कोई बस सभी अपने हीं अपने थे...

जो आई राह में आंधी नज़र ना कोई यार आया...
ना आखों में हीं आसू थे ना उनके दिल में प्यार आया...

गिराया जो मुकद्दर ने लगी ऐसी मुझे ठोकर...
कहा है जो चले थे साथ मेरी राह में होकर...

ये सिखा है ज़माने से यहाँ ना कोई अपना है..
सभी हैं यार मतलब के ये दुनिया एक धोखा है...

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सुमन

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