Thursday, September 20, 2012

एक व्रत आज रख लें !

तीज व्रत कर के उठी श्रीमती जी ने चरण स्पर्श किया!
कहा प्राणाधार आशीष दें
मैने कहा एक कल रखा था शिव के नाम
एक व्रत आज रख लें!
तिलमिला कर व्रत के पीडा को भूल कर
उन्होने मुझको तेज नजरों से निहारा
गोया किसी गरीब मनुष्य ने नहीं
ऐलियन ने हो उनको प्रेम से पुकारा
मुस्कुरा कर कहा ए जी क्या आप नहीं देखना चाहते मुझको स्वस्थ
क्या हुआ मेरे प्रियतम आपको क्या आपका दिमाग कहीं है व्यस्त
पहले तो मेरे व्रत से ज्यादा व्रत के पारण पर ध्यान लगाते थे
सुबह चने की घुघनी तो कभी जलेबी दूध ले कर आते थे
मैने अखबार से दृष्टी उठाई समझाया कि हे!! लक्ष्मीबाई
वीरांगना हो और हो गृह के हर कार्य मे दक्ष
क्या नहीं चाहती हो घर के बजट को वह सुचारु चले
सब्सीडी के है छह सिलेण्डर वह वाकई साल भर चले!
तभी कहीं दूर किसी कुक्कुर ने जोर से आवाज लगाई
परम विदुषी ने कहा तो दिग्विजयवा की सफ़ाई आई
इस सिलेण्डर के आग मे तो मनमोहन अब जलेगा
ममतामई के आगे अब वह घुटने के बल चलेगा
मेरे न खाने से यदि बचतें हो तुम्हारे सिलेण्डर तो
लो मैं जाती हू मायके अपने संभालो ये चक्कर
मैने प्रणतभाव से अखबार को संभाला और कहा
मैने बस राय दी थी कोई अमल करने को थोडे ही कहा था
तुम ही मेरी बसन्त हो तुम ज्ञान मे भी अनन्त हो!
सच मे देखॊ ममता मयी जोर लगा रही है
कांग्रेस शासित प्रदेशॊं मे नौ सिलेण्डर दिलवा रही है!
छोडो इस बेकार के चक्कर को और जरा एक दो दाना शक्कर दो
चाय आज थोडी फ़ीकी लग रही है!
तुम्हारी साडी और मुस्कान बहुत मीठी लग रही है!
अरे जरा पतिदेव को प्रसाद तो दो! शिव पूजा है तुमने
कुछ मुझे आशीर्वाद भी तो दो!
कनकलता मुस्कुराई हाथ मे दिया पेडे का टुकडा
और बच्चे के ओर रुख किया
मैने चैन की सांस ली और मन ही मन ये आस की
सुशील शिन्दे का बयान हो जाये सच
खत्म हो मेरे घर की मचमच!!
— BY अवध राम पाण्डेय

1 comment:

  1. देश के हालात पर करारा व्यंग्य

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