Sunday, February 27, 2011

संवाद ज़रूरी है !

वसीम अकरम का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद मे हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्यिक अंग्रेजी मे स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने वाले वसीम बचपन से ही पठन-पाठन मे सक्रिय रहे हैं। इन्होने गज़ल, कविता, लेख, कहानी आदि कई विधाओं मे हाथ आजमाया है और इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित भी होती रही हैं। इनकी रुचि लेखन के अलावा गायन मे भी रही है और इनके शब्दों और सुरों से सजा हुआ एक एलबम ’नैना मिला के’ भी रिलीज हो चुका है और एक अन्य एल्बम पर काम चल रहा है। अभी दिल्ली मे स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से कार्य कर रहे हैं और मयूर विहार, दिल्ली मे निवास कर रहे हैं। इनके लेख तमाम समाचार पत्रों मे आते रहते हैं। वसीम अकरम की ज्यादातर कविताएं हमारे बीच मौजूद सामयिक समस्याओं को अपना विषय बनाती हैं और सामाजिक विसंगतियों के मुकाबिल अपनी आवाज बुलंद करती हैं। प्रस्तुत कविता भी शोषण के खिलाफ़ वंचितों के संघर्ष के इसी स्वर को परवाज देते हुए हमारे समय के सबसे जरूरी प्रश्नों को टालने की बजाय उनका सामना करने की जरूरत पर बल देती है।
संपर्क: 9899170273

संवाद ज़रूरी है !

संवाद ज़रूरी है
सुबह, शाम और रात के उन लम्हों से
जो ख़ूबसूरत होते हुए भी
कुछ के लिए
किसी भयानक टीस की तरह हैं।

संवाद ज़रूरी है
उन मुट्ठियों से
जो हक़ के लिए तनने से पहले ही
डर जाती हैं कि कहीं
पूरा हाथ ही न काट दिया जाये।

संवाद ज़रूरी है
उस घर से
जिस घर में युवराज के
छद्म कदम तो पड़ते हैं
मगर रोटी के चंद टुकड़ों के
लड़खड़ाते क़दम भी नहीं पड़ते।

संवाद ज़रूरी है
उस पैसे से
जो अनाज के दानों पर लिखे
ग़रीब, मज़दूर के नामों को काट कर
उस पर अमीरों का नाम लिख देता है।

संवाद ज़रूरी है
उन आर्थिक नीतियों से

जो देश को महाशक्ति तो बनाती हैं
मगर भूखों के पेट में
दो दाने भी नहीं उड़ेल पातीं।

संवाद ज़रूरी है
धर्म के उन ठेकेदारों से
जो ईंट, पत्थर से बनी बेजान इमारतों के लिए
इंसान को इंसान के ख़ून का
प्यासा बना देते हैं।

संवाद ज़रूरी है
उस आधी दुनिया से
जिसका दामन हक़ से खाली है,
और जो बाजारवाद की बलिबेदी पर
मजबूर है चढ़ने के लिए।

संवाद ज़रूरी है
उन ग़रीब के बच्चों से
जिनकी आंखों में
आसमां छूने का ख़्वाब तो है
मगर जूठे बरतन धोने के सिवा
कोई पंख नहीं है उनके पास।

संवाद ज़रूरी है
हर उस शय से
जिसकी ज़द में आकर
तहज़ीब, रवायत और इंसानियत
सब अपना वजूद खो रहे हैं।

No comments:

Post a Comment