Sunday, February 13, 2011

वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है !

आशुतोष जी का जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के नोंअपर गाँव में हुआ है। उनकी प्राथमिक सिक्षा यही हुई। स्वाभाव से ही साहित्य प्रेमी रहे हैं लेकिन घरेलू परिस्थितयों के कारण उच्चा सिक्षा में इलेक्ट्रोनिक्स अभियंत्रण और विपणन प्रबंधन को चुना,और आगे की शिक्षा लखनऊ और नई दिल्ली में ली। इनकी विद्रोही प्रवृत्ति ही इनके व्यक्तित्व का सम्बल है। ये चिंगारी को कुचलने की जगह चिंगारी को हवा दे कर हर एक उस सामाजिक परिवारिक या व्यक्तिगत व्यवस्था में एक क्रांति लाने का विचार रखते हैं। ये उस सामाजिक परिवारिक या व्यक्तिगत व्यवस्था में एक क्रांति लाने का विचाररखते हैं जो दोगली विचाधाराओ पर आधारित है। ये स्वदेशी और मातृभाषा का प्रबल समर्थक हैं और व्यक्तिगत जीवन में भी इस विचार का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं। ये एक बहुरास्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं और अपनी सफाई में इतना कहना चाहते हैं कि "भूखे पेट और बिना बंदूकों के कोई जंग नहीं जीती जाती...व्यवस्था बदलनी है तो उसका हिस्सा बनना हमारी जरुरत है।" प्रस्तुत है इनकी कविता :-

वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है !

एहसासों की चादर मे लिपटे हुए
वक़्त की धूप मे अलसाये हुए ख्वाब
अब अंगड़ाई लेने लगे है ........

शायद उस बंजर जमीन में
जो तुमने बीज बोया था
आँसूओं की नमी से..
उस बीज मे अंकुर निकल रहा है..
कुछ बरस बाद ये बीज पेड़ बन जाएंगे..

ये ख्वाब एहसासों की चादर हटायेंगे
कुछ ख्वाब टूटेंगे, कुछ सच हो जाएंगे....
जो मंजिल हमने साथ देखी थी,
वहां पहुचने पर मेरे ख्वाब मुझे..
एकाकी पाएंगे...........

कुछ पथिक पेड़ के नीचे ठहरेंगे बातें करेंगे,
फिर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाएंगे..
हर घंटे दिन बरस .......
पेड़ को अकेला खड़ा पायेंगे......

वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
उस मंजिल पर,जो हमने साथ देखी थी...
सब कुछ तो है..
पर तुम्हारे न होने का एहसास
इस मंजिल पर, इस पेड़ के नीचे...
टूटे पत्तों की तरह,बिखरा पड़ा है.......
वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..
वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है..

1 comment:

  1. अनिरुद्ध जी मैं समझ नहीं पाया की मेरी तस्वीर व कविता का शीर्षक आप के ब्लॉग पर कैसे लिंक हो गया..
    आप इस पूरी कविता को
    http://ashu2aug.blogspot.com/
    पर पढ़ सकते हैं..

    धन्यवाद स्थान देने के लिये..
    आभार आप का

    आशुतोष

    ReplyDelete