Thursday, February 17, 2011

मानसिकता का आरक्षण !

प्रस्तुत कविता चारू मिश्रा 'चंचल' की है। लखीमपुर (उ प्र) की रहने वाली चारु ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में डिग्री हासिल की है। इन दिनों स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता मे व्यस्त हैं। 'परिंदे', 'वाक', 'परिकथा' और 'गुफ्तगू' आदि पत्रिकाओं में कई कवितायेँ प्रकाशित हो चुकी है।

मानसिकता का आरक्षण !
मुस्कराता है वह
और हम भी
खिलखिलाते है
उसके साथ-साथ
तब - जब
उसकी हरकतें करती है
हमारा मनोरंजन।
बावजूद इसके
आज तक
हमने कभी भी
न तो उसे अपने हाथों से छुआ
और न ही कभी उसे
अपनी मानसिकता में ''अरक्षित'' घरौंदे में जगह दी !

इसलिए
हमेशा ही वह
आता है जाता है
लेकिन बस चौखट तक
बहुत कुछ-सीख चुका है वह
शायद अब तक

तभी तो
आगे कदम बढ़ाने से डरता है
और हमेशा ही कनखियों से
दरवाजे पर खड़ा खड़ा
टुकुर-टुकुर निहारता है
उन रंगीन दुनियावी लफ्जों को
जो अक्सर ही उछलते है
उसके सामने पूरे कमरे में।

तब - जब
हम पढ़ रहे होते है
अपने टीचर से
किताबी पहाडा
तब वह पढ़ रहा होता है
जिंदगी की असली पढ़ाई !
(सुना है नवनियुक्त झाड़ू वाले का छोकरा है वह)

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