Wednesday, January 12, 2011

आंखें भी वही हैं दरीचा भी वही है।

आंखें भी वही हैं दरीचा भी वही है।
और मन के आँगन में उतरता भी वही है

जिसने मेरे जज्बों की सदाक़त को ना जाना,
अब मेरी रफाकात को तरसता भी वही है ,

इस दिल के खराबे से गुज़र किस का हुआ है,
आँखें भी वही है होंट भी लहजा भी वही है

जो कुछ भी कहा था मेरी तन्हाईयों ने मुझसे,
इस शहर की दिवार पे लिखा भी वही है,

वह जिस ने दिए मुझ को मुहब्बत के खजाने,
बादल की तरह आँख से बरसा भी वही है,

साथ निभाने की कसमें खाई थी जिसने,
उम्र भर का गम दे के गया भी वही है......!

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